RTI खुलासा: धर्मस्थल विवाद में सबूत नष्ट करने के आरोप, कार्यकर्ता का दावा—किशोरी का शव ‘कुत्ते की तरह’ दफन

RTI खुलासा: धर्मस्थल विवाद में सबूत नष्ट करने के आरोप, कार्यकर्ता का दावा—किशोरी का शव ‘कुत्ते की तरह’ दफन

धर्मस्थल विवाद: RTI से उठे सवाल, सबूतों पर बड़ा आरोप

कर्नाटक के धर्मस्थल में कथित ‘मास बरीअल’ विवाद नया मोड़ ले चुका है। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने दावा किया है कि पुलिस रिकॉर्ड में फेरबदल हुआ और कई अहम दस्तावेज गायब कर दिए गए। उनका कहना है कि RTI के जवाबों में 2012 से 2014 के बीच लापता लोगों और संदिग्ध मौतों से जुड़े कागज़ात या तो बदले गए या फिर मिल ही नहीं रहे—और यह महज चूक नहीं, बल्कि “योजना के तहत सबूत मिटाने” जैसा दिखता है।

सबसे संवेदनशील आरोप एक किशोरी की मौत को लेकर है। कार्यकर्ता का कहना है कि 2012 में मंदिर परिसर के पास एक किशोरी का शव मिला था, जिसे बिना पूरी जांच, बिना आवश्यक दस्तावेज़ीकरण और बिना परिवार को सही तरह अंतिम संस्कार का मौका दिए जल्दबाजी में दफना दिया गया—“जैसे किसी जानवर को दफनाते हैं।” यह बयान भावनात्मक है, पर सवाल कानूनन प्रक्रियाओं पर भी है: क्या पंचनामा हुआ? क्या पोस्टमार्टम कराया गया? क्या परिजनों की सहमति और पहचान दर्ज हुई?

यह मामला तब सुर्खियों में आया जब मंदिर में 1995 से 2014 तक सफाईकर्मी रहे सीएन चिन्नैया (उर्फ़ चेन्‍ना) ने शिकायत दी कि उनसे 100 से ज्यादा महिलाओं और नाबालिगों के शव दफन कराए गए। उन्होंने कहा, कई शवों पर यौन हिंसा के निशान थे और कुछ मामलों में गरीब लोगों को कुर्सी से बांध कर तौलिए से दम घोंटा गया। चिन्नैया का दावा था कि उन्होंने एक जगह से खुद हड्डियां खोदकर निकालीं और तस्वीरें भी दीं।

लेकिन जांच के बीच कहानी पलट गई। विशेष जांच दल (SIT) ने क्रॉस-एग्ज़ामिनेशन में चिन्नैया के बयानों में विरोधाभास बताया और कोर्ट में झूठ बोलने (परजरी) के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद उनकी गवाह सुरक्षा भी वापस ले ली गई। दूसरी तरफ, एक महिला सुजाता भट्ट, जिन्होंने पहले अपनी बेटी के धर्मस्थल में लापता होने का दावा किया था, उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया।

SIT ने चिन्नैया द्वारा बताई गई 11 संभावित दफन स्थलों की खुदाई कराई। दो स्थानों पर आंशिक मानव अवशेष—एक जगह अधूरा कंकाल और दूसरी जगह खोपड़ी व कुछ हड्डियां—मिलीं; नौ जगह कुछ नहीं निकला। यहीं से विवाद तेज हुआ। समर्थक कहते हैं—अगर सबूत मिटाए गए हों, तो खाली गड्ढों का मिलना चौंकाने वाला नहीं। विरोधी पक्ष कहता है—यही दर्शाता है कि शुरुआती आरोप अतिरंजित थे।

गैरकानूनी मौतों में आम तौर पर प्रक्रिया साफ है—घटनास्थल का पंचनामा, पोस्टमार्टम, पहचान और केस डायरी में प्रविष्टि। कई राज्यों के पुलिस मैनुअल में FIR रजिस्टर जैसे रिकॉर्डों को दीर्घकाल तक संरक्षित रखने की व्यवस्था होती है। अगर वाकई रिकॉर्ड “गायब” हुए हों, तो यह खुद में एक अपराध हो सकता है—भारतीय दंड संहिता में सबूत छिपाने और झूठे दस्तावेज़ तैयार करने पर सख्त धाराएं हैं। यही वजह है कि RTI जवाबों में दर्ज “रिकॉर्ड अनुपलब्ध” जैसे शब्द अब जांच के केंद्र में हैं।

कानूनी मोर्चे पर भी उतार-चढ़ाव रहे। एक जज ने अस्थायी आदेश देकर ऑनलाइन सामग्री हटाने का निर्देश दिया, जिसके चलते 800 से ज्यादा लिंक हटे। बाद में, मीडिया में संभावित हितों के टकराव पर सवाल उठे—जैसे शिक्षा संस्थानों से जुड़ाव और एक समय मंदिर-परिवार का पक्ष रखने वाली लॉ फर्म में काम। दबाव बढ़ा तो जज ने खुद को मामले से अलग किया। कानूनी समुदाय इसे उचित कदम मानता है—ऐसे मामलों में निष्पक्षता जितनी दिखती है, उतनी ही होनी भी चाहिए।

आरोपों का दूसरा पहलू सामाजिक है। नागरिक समाज समूह—मानवाधिकार नेटवर्क और दलित अधिकार संगठनों सहित—स्वतंत्र जांच की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि मुख्य शिकायतकर्ता चिन्नैया दलित समुदाय से हैं; उन पर दबाव पड़ा हो सकता है—मंदिर पक्ष से भी और पुलिस पूछताछ में भी। कार्यकर्ताओं का यह भी दावा है कि चिन्नैया अपने परिवार की एक युवती के कथित उत्पीड़न के बाद धर्मस्थल छोड़कर भागे थे। ये आरोप अदालत में साबित होने हैं, लेकिन मांग साफ है—ऐसी जांच जिसमें संभावित हितधारक पक्ष दूरी पर रहें।

राज्य का रुख अपेक्षाकृत सतर्क है। कर्नाटक के गृहमंत्री रामलिंगा रेड्डी ने कहा—जांच जारी है, जो गलत होगा उसके खिलाफ कार्रवाई होगी; धर्म पर राजनीति न हो। सरकार का संदेश साफ है कि SIT अपना काम करे और अदालतें अपने रास्ते पर चलें।

SIT की दिशा, कानून की कसौटी और आगे का रास्ता

SIT ने अब तक जिन 11 स्थानों की खुदाई कराई, वहां से सीमित अवशेष मिले। फॉरेंसिक दृष्टि से वर्षों पुराने दफन स्थानों पर कई चीज़ें परिणाम को प्रभावित करती हैं—मिट्टी की अम्लता, पानी का स्तर, जंगली जानवरों की दखल, और सबसे अहम, दफन की गहराई व तरीका। ऐसे में “कुछ नहीं मिला” का मतलब यह नहीं कि “कुछ था ही नहीं”—लेकिन यह भी नहीं कि आरोप स्वतः सिद्ध हो गए। इसलिए वैज्ञानिक सैंपलिंग, कार्बन डेटिंग, डीएनए मिलान और कस्टडी की चेन पर अब फोकस है।

कानून के हिसाब से, संदिग्ध मौत पर धारा 174 के तहत जांच, पोस्टमार्टम का अनिवार्य होना, और परिजनों को सूचना—ये कदम SOP का हिस्सा हैं। अगर 2012 की किशोरी के मामले में ये कदम नहीं उठे, तो क्यों नहीं? क्या कोई लिखित आदेश था? पुलिस डायरी में उसकी एंट्री कहाँ है? ये वे सवाल हैं जिनके जवाब SIT से उम्मीद की जा रही है।

रिकॉर्ड-कीपिंग पर भी नजर टिकेगी। पुलिस स्टेशन में जनरल डायरी, FIR रजिस्टर, मौत के पंचनामे, मलकाना रजिस्टर—इनका रख-रखाव समयबद्ध और ऑडिट योग्य होना चाहिए। अगर RTI में “रजिस्टर अनुपलब्ध/रिकॉर्ड नष्ट” जैसी बात आई है, तो उसकी अनुमति किसके आदेश से हुई? रिकॉर्ड नष्ट करने की प्रक्रिया भी दस्तावेज़न की मांग करती है। यहां कोई गैप दिखता है, तो वह खुद एक जांच का विषय होता है।

चिन्नैया की परजरी गिरफ्तारी जांच को उलझाती भी है और आगे बढ़ाती भी। एक ओर अभियोजन पक्ष कह सकता है—मुख्य कथा झूठ है। दूसरी ओर, बचाव पक्ष और कार्यकर्ता यह तर्क दे सकते हैं—अगर बयान में विरोधाभास हैं, तो वह दबाव, डर, या याददाश्त की त्रुटि का नतीजा भी हो सकता है। अदालत का काम है सबूतों की विश्वसनीयता परखना—मेडिकल, फॉरेंसिक और दस्तावेज़ी सबूत यहां निर्णायक होंगे।

गैग ऑर्डर और बाद में जज का खुद को अलग करना इस बात की याद दिलाता है कि हाई-प्रोफाइल मामलों में नैरेटिव मैनेजमेंट भी एक लड़ाई होती है। डिजिटल प्लेटफॉर्म से कंटेंट हटना परिवारों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों—सबके लिए सूचना तक पहुंच पर असर डालता है। लेकिन न्यायालयों के लिए यह भी महत्वपूर्ण है कि मीडिया ट्रायल न हो। इस संतुलन को साधना आसान नहीं, पर पारदर्शिता और निष्पक्षता—दोनों की रक्षा के लिए यही मार्ग है।

गवाह सुरक्षा पर भी चर्चा जरूरी है। भारत में गवाह संरक्षण की नीति को सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में मान्यता दी थी और राज्यों ने योजनाएं बनाईं। अगर किसी गवाह की सुरक्षा हटती है, तो उसके कारण स्पष्ट रूप से दर्ज होने चाहिए—क्या जोखिम खत्म हुए, या विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठे? धर्मस्थल केस में यह निर्णय कब, किस आधार पर हुआ—यह स्पष्ट होने से भरोसा बढ़ेगा।

इस बीच, नागरिक समाज की मांग है कि जांच का दायरा सीमित न रहे। उदाहरण के तौर पर—मंदिर परिसरों में लगे CCTV फुटेज का लॉग, उस समय की ड्यूटी रोस्टर, कब्रिस्तानों/श्मशानों के रिकॉर्ड, एंबुलेंस या शव वाहन की एंट्री—ये सब भी क्रॉस-वेरिफिकेशन में मदद कर सकते हैं। साथ ही, अगर किसी स्थल से अवशेष मिले हैं, तो उनके DNA प्रोफाइल का खुले-आम स्टेटस अपडेट परिवारों और जनता के भरोसे के लिए जरूरी है।

ऐसे मामलों में अदालतें अक्सर टाइमलाइन चाहती हैं—कब क्या हुआ, किसने क्या कहा, और जांच ने क्या पाया। अभी तक की प्रमुख घटनाएं कुछ यूं रही हैं:

  • 1995–2014: चिन्नैया का मंदिर में सफाईकर्मी के रूप में काम।
  • 2012: कार्यकर्ता के मुताबिक मंदिर परिसर के पास एक किशोरी का शव मिला और जल्दी में दफनाया गया।
  • 2012–2014: RTI जवाबों के अनुसार, कुछ पुलिस रिकॉर्ड अनुपलब्ध/बदले हुए दिखाई दिए।
  • शिकायत के बाद: चिन्नैया के 11 बताये स्थलों पर SIT द्वारा खुदाई, दो जगह आंशिक अवशेष मिले।
  • जांच के दौरान: जज का अस्थायी गैग ऑर्डर; बाद में संभावित हितों के टकराव के सवालों पर खुद को अलग किया।
  • हालिया: चिन्नैया पर परजरी में गिरफ्तारी; एक महिला द्वारा अपनी पहले की गुमशुदगी का दावा वापस लेना।
  • वर्तमान: SIT आगे की जांच में अन्य सुरागों पर काम कर रही है; सरकार का कहना—दोषी कोई भी हो, कार्रवाई होगी।

फॉरेंसिक जांच का अगला चरण महत्वपूर्ण होगा। जो अवशेष मिले हैं, उनकी उम्र, जैविक लिंग, और DNA प्रोफाइल—ये तथ्य बताएंगे कि क्या वे कथित पीड़ितों से मेल खाते हैं। अगर मेल खाते हैं, तो यह कहानी का रुख बदल सकता है; अगर नहीं, तो आरोप कमजोर पड़ेंगे। चूंकि दफन की बात है, एक्सकवेशन के दौरान स्ट्रैटिग्राफी, मिट्टी के नमूनों का अध्ययन, और वस्त्र/धातु के सूक्ष्म अवशेषों की तलाश—ये सब क्रिटिकल हैं।

जांच का नैतिक पहलू भी उतना ही अहम है। जिन परिवारों ने किसी को खोया है, उनके दुख और गरिमा की रक्षा प्राथमिकता है। किसी भी शव के साथ जल्दबाजी, बिना दस्तावेज़ और बिना परिवार की भागीदारी—यह केवल प्रक्रिया का उल्लंघन नहीं, सामाजिक संवेदनशीलता का भी सवाल है।

धर्मस्थल विवाद का सच अदालत और विज्ञान की कसौटी पर ही सामने आएगा। फिलहाल, आरोप हैं—कड़े और विचलित करने वाले। दूसरी ओर, जांच एजेंसियां कह रही हैं—कथा में छेद हैं, गवाह भरोसेमंद नहीं। इन दो ध्रुवों के बीच एक ईमानदार, स्वतंत्र और पारदर्शी जांच ही रास्ता खोल सकती है। लोगों की नज़र अब SIT की अगली रिपोर्ट, फॉरेंसिक निष्कर्षों और कोर्ट की कार्यवाही पर टिकी है।

टिप्पणि (6)

  1. Shubham Ojha
    Shubham Ojha
    25 अग॰, 2025 AT 00:16 पूर्वाह्न

    इस मामले में जो भी हो रहा है, वो सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि हमारी न्याय प्रणाली की आत्मा का परीक्षण है। जब एक गरीब सफाईकर्मी अपने दम पर सच बोलता है, तो उसके खिलाफ झूठ के आरोप लगाए जाते हैं-ये क्या तरीका है? रिकॉर्ड गायब होना, पंचनामा न होना, परिवार को अंतिम संस्कार न देना-ये सब एक समाज की नींव को तोड़ रहा है। हम सिर्फ फॉरेंसिक रिपोर्ट नहीं चाहते, हम इंसानियत चाहते हैं।

  2. tejas maggon
    tejas maggon
    25 अग॰, 2025 AT 16:13 अपराह्न

    सब कुछ बनाया गया है। पुलिस ने रिकॉर्ड डाल दिए थे अंदर ही। किशोरी का शव तो कभी नहीं मिला। ये सब एक बड़ा फेक न्यूज़ कैंपेन है। अमेरिका और ब्रिटेन के लोग इसे फैला रहे हैं। RTI भी उनके लिए बनाया गया टूल है। जांच कर रही SIT भी उनकी टीम है। बस एक आदमी को गिरफ्तार कर दिया ताकि सब शांत हो जाए।

  3. Viraj Kumar
    Viraj Kumar
    27 अग॰, 2025 AT 16:06 अपराह्न

    ये सब बकवास है। एक आदमी ने अपने बयान में विरोधाभास डाले, अब उसे गिरफ्तार किया गया। ये न्याय है। RTI के जवाब में रिकॉर्ड अनुपलब्ध होना तो भारत में रोज़ होता है। क्या आप जानते हैं कि एक छोटे से शहर में FIR रजिस्टर का एक पन्ना कितने सालों से गायब है? ये बातें न्याय की नहीं, भावनाओं की हैं। फॉरेंसिक डेटा दिखाएं, तब बात करें। अब तक तो कुछ भी साबित नहीं हुआ।

  4. Subashnaveen Balakrishnan
    Subashnaveen Balakrishnan
    29 अग॰, 2025 AT 02:27 पूर्वाह्न

    अगर चिन्नैया के बयान में विरोधाभास हैं तो उसका मतलब ये नहीं कि सब कुछ झूठ है। याददाश्त खराब हो सकती है। डर लग सकता है। बहुत से लोग जिन्होंने इस मंदिर में काम किया है, उन्हें भी डर लग रहा होगा। अगर 11 जगहों में से दो पर अवशेष मिले हैं तो ये बहुत महत्वपूर्ण है। क्यों नहीं इन अवशेषों के डीएनए का खुला डेटाबेस बना दिया जाए? जनता को बताया जाए कि ये किसके हैं। ये एक न्याय की बात है, न कि राजनीति की।

  5. Rajesh Dadaluch
    Rajesh Dadaluch
    31 अग॰, 2025 AT 02:17 पूर्वाह्न

    किशोरी का शव कुत्ते की तरह दफन? ये बात बहुत भावनात्मक है। लेकिन क्या इसका कोई दस्तावेज है? क्या कोई फोटो है? क्या किसी ने इसे देखा? बस एक बयान से कुछ नहीं होता।

  6. Keshav Kothari
    Keshav Kothari
    31 अग॰, 2025 AT 15:18 अपराह्न

    सब बातें बहुत अच्छी हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि ये सारी जांच बस एक टाइम पास है? जब तक जनता नहीं उठेगी, तब तक कोई नहीं बदलेगा। ये सब बस एक बड़ा नाटक है। कोई नहीं जानता कि सच क्या है। और शायद कोई जानना भी नहीं चाहता।

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