गुजरात बीजेपी नेता रूपाला की टिप्पणी पर भीलवाड़ा और सवाई माधोपुर में राजपूत समुदाय का उग्र विरोध

गुजरात बीजेपी नेता रूपाला की टिप्पणी पर भीलवाड़ा और सवाई माधोपुर में राजपूत समुदाय का उग्र विरोध

भीलवाड़ा और सवाई माधोपुर में राजपूत समुदाय का आक्रोश

बीजेपी नेता रूपाला विवाद नया नहीं है, लेकिन जब गुजरात के इस बड़े नेता परशोत्तम रूपाला द्वारा की गई टिप्पणी का मामला सामने आया, तो राजस्थान के राजपूत समाज ने खुलकर नाराजगी जाहिर की। भीलवाड़ा सवाई माधोपुर दोनों जगह राजपूत समाज के लोगों ने एकजुट होकर सबसे पहले सड़कों पर अपनी ताकत दिखाई। हर चौक-चौराहा नारों से गूंज उठा। प्रदर्शनकारियों ने न सिर्फ रूपाला के खिलाफ जमकर नारेबाज़ी की, बल्कि उनके पुतले भी जलाए।

यह विरोध केवल नारों या पुतला दहन तक सिमटा नहीं रहा। स्थानीय समाज के नेताओं ने BJP से खुलकर सवाल किए— क्या चुनाव के महीनों में ही जातीय संवेदनशीलता की अहमियत याद आती है? समाज के भाईचारे और सम्मान पर सवाल खड़े करने वाले नेताओं पर कार्रवाई की मांग सार्वजनिक मंच से सुनाई दी।

जातीय सम्मान और टिकट वितरण पर उठे सवाल

इन विरोध प्रदर्शनों की सबसे दिलचस्प बात रही राजनीतिक पार्टियों की रणनीति पर उठा बड़ा सवाल। राजपूत नेताओं ने कहा कि बार-बार यह देखा गया है कि चुनाव के नजदीक आते ही पार्टियां समाज के अहम् समुदायों को साधने की कोशिश करती हैं, लेकिन जैसे ही किसी बड़े नेता के मुंह से अपमानजनक बात निकल जाती है, पार्टी चुप्पी साध लेती है।

  • राजपूत समाज के नेताओं ने साफ तौर पर परशोत्तम रूपाला के लोकसभा टिकट को वापस लेने की मांग उठाई।
  • कम्यूनिटी का यह भी कहना था कि राजनीतिक स्थिति और वोट समीकरण बदलने के लिए समाज के स्वाभिमान का सौदा नहीं किया जा सकता।
  • टिकट वितरण में लगातार हो रहे पक्षपात और समुदाय की अनदेखी को लेकर लोगों में गहरा रोष दिखाई दिया।

प्रदर्शन की तासीर यह साबित करती है कि राजपूत समुदाय खुद को केवल चुनावी मोहरे के तौर पर नहीं देखना चाहता। उनके लिए सम्मान और राजनीतिक भागीदारी, दोनों बराबर मायने रखते हैं। रूपाला प्रकरण की आंच सिर्फ गुजरात या राजस्थान तक सीमित नहीं रही। देशभर में इस बयान के बाद राजपूत समाज के अंदर बेचैनी देखी गई, जिससे साफ है कि जातीय सम्मान का सवाल पूरे समाज को झंकझोर देता है।

राजनीतिक पार्टियां आमतौर पर ऐसे मामलों को बड़ी आसानी से हवा में उड़ा देती हैं, लेकिन इस बार गुस्सा व्यापक था और विरोध का पैमाना भी बड़ा। पुलिस सहित स्थानीय प्रशासन की मुस्तैदी के बावजूद सभाएं कई जगह हजारों की भीड़ लेकर खड़ी हुईं, जो दिखाता है कि यह आंदोलन लंबा खिंच सकता है।

टिप्पणि (12)

  1. Rajesh Dadaluch
    Rajesh Dadaluch
    29 अप्रैल, 2025 AT 05:57 पूर्वाह्न

    ये सब चुनाव से पहले का नाटक है।

  2. Pratyush Kumar
    Pratyush Kumar
    30 अप्रैल, 2025 AT 05:10 पूर्वाह्न

    राजपूत समाज ने बस अपना सम्मान मांगा है। ये कोई जाति का झगड़ा नहीं, बल्कि राजनीति में इज्जत का सवाल है। जब तक पार्टियां टिकट बांटने में लालची रहेंगी, ऐसे विरोध बढ़ते रहेंगे।

  3. nishath fathima
    nishath fathima
    2 मई, 2025 AT 00:50 पूर्वाह्न

    इस तरह की बातें बिल्कुल गलत हैं। किसी भी समुदाय का सम्मान नहीं तोड़ा जा सकता। ये नेता को सबक सिखाना चाहिए।

  4. DHEER KOTHARI
    DHEER KOTHARI
    2 मई, 2025 AT 16:17 अपराह्न

    मुझे लगता है ये सब बहुत बुरा नहीं है 😊 अगर लोग अपने सम्मान के लिए उठ खड़े हो रहे हैं तो ये तो अच्छी बात है। बस शांति से रहें, और बात बनाएं। 🙏

  5. vineet kumar
    vineet kumar
    2 मई, 2025 AT 22:16 अपराह्न

    इस मामले में सबसे बड़ी बात ये है कि राजनीतिक पार्टियां समुदायों को टिकट के रूप में देखती हैं, न कि भागीदार के रूप में। राजपूत समाज का विरोध सिर्फ रूपाला के बयान के खिलाफ नहीं, बल्कि एक व्यवस्था के खिलाफ है जो उन्हें निरंतर अनदेखा करती है। ये आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक पार्टियां अपनी रणनीति नहीं बदलतीं।

  6. Deeksha Shetty
    Deeksha Shetty
    3 मई, 2025 AT 07:37 पूर्वाह्न

    पार्टी चुप क्यों है ये सवाल किसी ने नहीं पूछा तो मैं पूछ रही हूं ये सब ठीक है क्या जब कोई नेता जाति के नाम पर बदमाशी करे तो पार्टी बस बैठ जाए ये लोकतंत्र है या बेइज्जती का खेल

  7. Ratna El Faza
    Ratna El Faza
    3 मई, 2025 AT 20:25 अपराह्न

    मुझे लगता है ये सब बहुत बुरा नहीं है। अगर हम अपने सम्मान के लिए बोलें तो ये अच्छी बात है। बस थोड़ा शांति से रहें।

  8. Nihal Dutt
    Nihal Dutt
    4 मई, 2025 AT 23:19 अपराह्न

    लेकिन अगर रूपाला ने कुछ गलत कहा तो वो क्या बदल जाएगा ये सब तो बस राजपूतों का झूठा अहंकार है और वो लोग हमेशा से अपने ऊपर बहुत ज्यादा दावा करते हैं और अब वो चुनाव के लिए भीड़ लगा रहे हैं अच्छा नहीं लगता

  9. Swapnil Shirali
    Swapnil Shirali
    6 मई, 2025 AT 17:40 अपराह्न

    अरे भाई, ये तो बस चुनावी फैंटेसी है। रूपाला का बयान अगर गलत है तो उसे निकाल दो, लेकिन राजपूतों को भी याद रखना होगा कि वो इतिहास में बहुत बड़े नहीं रहे... अब तो वो बस एक टिकट का नंबर हैं। ये विरोध तो बस एक बार का ट्रेंड है, अगले हफ्ते किसी और के बारे में बात होगी। 😏

  10. Upendra Gavale
    Upendra Gavale
    7 मई, 2025 AT 10:37 पूर्वाह्न

    जिंदगी में दो चीज़ें हैं जो बदलती नहीं - दिल की आवाज़ और जाति का सम्मान 😌 अगर रूपाला ने बयान दिया तो उसे समझना चाहिए कि राजपूत बस एक वोट नहीं हैं... वो इतिहास हैं। 🙏✨

  11. abhimanyu khan
    abhimanyu khan
    8 मई, 2025 AT 07:39 पूर्वाह्न

    यह घटना एक राजनीतिक अनुचितता का प्रतीक है। राजपूत समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए नागरिक अभियान का आयोजन आवश्यक है। जातीय संवेदनशीलता के नाम पर चुनावी लाभ उठाना लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है। इस तरह की घटनाओं को राष्ट्रीय स्तर पर विचार किया जाना चाहिए।

  12. Jay Sailor
    Jay Sailor
    9 मई, 2025 AT 23:03 अपराह्न

    ये सब बहुत बड़ा मुद्दा है, लेकिन आप लोग भूल रहे हैं कि गुजरात के इस नेता का बयान भारतीय इतिहास के खिलाफ है। राजपूत तो देश के लिए खून बहाते रहे हैं, और आज वो चुनावी टिकट के लिए टक्कर ले रहे हैं? ये देश के लिए शर्म की बात है। आप लोग इस बात पर ध्यान नहीं दे रहे कि जब कोई नेता अपनी जाति के बारे में बोलता है तो वो उसकी जाति के लिए नहीं, बल्कि देश के लिए बोलता है। राजपूत समाज को अपनी अहंकार छोड़ना चाहिए। ये सब तो बस एक बहाना है जिससे वो टिकट चाहते हैं। अगर वो सच्चे देशभक्त होते तो वो अपने नेता के बयान को समझते और उसकी बात को गलत नहीं मानते। ये सब बस एक राजनीतिक बहाना है।

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