2025 की आर्थिक रेस: कौन आगे, कौन कितना मजबूत
भारत की वृद्धि की असली कहानी राज्यों की अर्थव्यवस्था में छिपी है। 2025 में टॉप-10 राज्य मिलकर देश की करीब 71.6% जीडीपी बनाते हैं—यानी निवेश, नौकरियां, टैक्स और एक्सपोर्ट का बड़ा हिस्सा यहीं से आता है। यह रैंकिंग सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) पर आधारित है, जो राज्यों की कुल आर्थिक गतिविधि का सबसे सीधे तौर पर दिया गया संकेत है। कुल उत्पादन में भारी-भरकम राज्यों का दबदबा है, पर समृद्धि की बारीक कहानी प्रति व्यक्ति आय में दिखती है। इस तस्वीर में भारत के सबसे अमीर राज्य सिर्फ बड़े नहीं, बल्कि विविधीकृत और नीति के लिहाज से भी चुस्त हैं।
महाराष्ट्र: आर्थिक इंजन—करीब ₹45.31 लाख करोड़ के GSDP के साथ महाराष्ट्र सबसे ऊपर है। फाइनेंस, आईटी, ऑटो, फार्मा और मीडिया—हर बड़े सेक्टर में यहां गहरी पकड़ है। मुंबई-पुणे कॉरिडोर, नासिक, नागपुर और औरंगाबाद जैसे क्लस्टर निवेश खींचते हैं। अंतरराष्ट्रीय मानक वाली दवा इकाइयां, ऑटो सप्लाई चेन और सर्विसेज ने राज्य की रीढ़ मजबूत की है। प्रति व्यक्ति आय ~₹2.89 लाख के आसपास बताई जाती है, जो शहरी-सेवा अर्थव्यवस्था की ताकत दिखाती है।
तमिलनाडु: सबसे संतुलित मॉडल—₹31.55 लाख करोड़ का GSDP और करीब 9% राष्ट्रीय योगदान। ‘एशिया का डेट्रॉइट’ कहलाने वाला यह राज्य ऑटो और ऑटो-पार्ट्स, टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, आईटी/ITES और पावर उपकरण में अग्रणी है। चेन्नई, कोयंबटूर, होसुर और तिरुपुर—हर शहर का अपना औद्योगिक किरदार है। प्रति व्यक्ति आय ~₹3.50 लाख का स्तर बताता है कि सर्विसेज और मैन्युफैक्चरिंग का मेल विकास को स्थिरता देता है।
कर्नाटक: टेक और डीप-टेक की राजधानी—₹28.09 लाख करोड़ GSDP और मजबूत आईटी-बीटी इकोसिस्टम। बेंगलुरु सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट, स्टार्टअप्स, एयरोस्पेस, इलेक्ट्रॉनिक्स डिजाइन और बायोटेक रिसर्च से ग्लोबल नक्शे पर है। राज्य की प्रति व्यक्ति आय ~₹3.31 लाख के करीब आंकी जाती है। पेटेंट, वेंचर कैपिटल और हाई-स्किल जॉब्स ने कर्नाटक की ग्रोथ गुणवत्ता बढ़ाई है।
गुजरात: मैन्युफैक्चरिंग और पोर्ट पावर—₹27.90 लाख करोड़ GSDP के साथ गुजरात का बल मैन्युफैक्चरिंग, पेट्रोकेमिकल, टेक्सटाइल और डायमंड कटिंग-पालिशिंग में है। आसान बिजनेस प्रक्रियाएं, स्पेशल इन्वेस्टमेंट रीजन, और मजबूत पोर्ट नेटवर्क (लॉजिस्टिक्स इकोसिस्टम) इसे एक्सपोर्ट-ड्रिवन बनाते हैं। अहमदाबाद-वडोदरा-सूरत-राजकोट का औद्योगिक घेरा आपूर्ति श्रृंखला को गति देता है।
उत्तर प्रदेश: आकार से असर—₹26.63 लाख करोड़ GSDP के साथ यूपी अब सिर्फ एग्रीकल्चर स्टोरी नहीं है। एक्सप्रेसवे, डिफेंस कॉरिडोर, इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग और शहरीकरण की नई लहर उद्योग का विस्तार कर रही है। खाद्य प्रसंस्करण, MSME और पर्यटन (अयोध्या, वाराणसी, मथुरा) मांग और रोजगार पैदा कर रहे हैं।
पश्चिम बंगाल: सेवाएं और पारंपरिक उद्योग—₹18.76 लाख करोड़ GSDP। कोलकाता-केंद्रित सर्विसेज, चाय-जूट जैसे पारंपरिक उद्योग और उभरते लॉजिस्टिक्स नेटवर्क राज्य को स्थिर आधार देते हैं। पूर्वी भारत के लिए यह प्राकृतिक गेटवे है, जिससे पोर्ट-रेल कनेक्टिविटी की अहमियत बढ़ती है।
राजस्थान: खान, पर्यटन और ऊर्जा—₹17.13 लाख करोड़ GSDP। खनन (पत्थर, जिंक), पर्यटन, कृषि और अब रिन्यूएबल एनर्जी (सोलर, विंड) का उभार। औद्योगिक क्षेत्रों में सीमेंट, सिरेमिक और इंजीनियरिंग गुड्स की पकड़ बन रही है। सड़क नेटवर्क और इंडस्ट्रियल पार्क राज्य की नई ताकत हैं।
आंध्र प्रदेश: तटीय बढ़त, नई इकॉनमी—₹15.81 लाख करोड़ GSDP। विजाग-आंध्र तट पर पोर्ट-आधारित उद्योग, एक्वा कल्चर, खाद्य प्रसंस्करण और उभरती टेक सेवाएं ग्रोथ को सहारा दे रही हैं। लॉजिस्टिक्स-फ्रेंडली लोकेशन उसे सप्लाई चेन में बढ़त देती है।
तेलंगाना: टेक, लाइफ-साइंसेज और इंफ्रा—₹15.26 लाख करोड़ GSDP। हैदराबाद फार्मा, वैक्सीन, आईटी और डेटा सेंटर्स के लिए बड़ा हब बन चुका है। रियल एस्टेट और शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर ने बिजनेस इकोसिस्टम को गति दी है, जिससे उच्च-मूल्य की नौकरियां बनी हैं।
मध्य प्रदेश: कृषि से उद्योग की ओर—₹15.12 लाख करोड़ GSDP। एग्रीकल्चर, खाद्य प्रसंस्करण, खनिज, और अब ऑटो-इंजीनियरिंग सप्लाई चेन में राज्य तेजी से जगह बना रहा है। इंदौर-भोपाल जैसे शहर स्वच्छता, स्टार्टअप और सेवाओं के कारण नए निवेशकों को आकर्षित कर रहे हैं।
- टॉप-10 राज्यों की संयुक्त हिस्सेदारी ~71.6%: यानी आर्थिक गतिविधि का भारी केंद्रीकरण।
- पश्चिम और दक्षिण की बढ़त: मजबूत उद्योग, पोर्ट्स, आईटी और सर्विस क्लस्टर का प्रभाव साफ दिखता है।
- प्रति व्यक्ति आय की तस्वीर अलग: सिक्किम (~₹5.87 लाख), गोवा (~₹4.93 लाख) और दिल्ली (~₹4.62 लाख) कुल उत्पादन में छोटे पर औसत नागरिक आय में आगे।
क्यों ये राज्य आगे हैं, और आगे किस पर नजर रखें
विविधीकरण ही ढाल है—जिन राज्यों में मैन्युफैक्चरिंग, सर्विसेज और एग्री-बेस्ड वैल्यू चेन का संतुलन है, वहां झटकों का असर कम होता है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक ने यही किया—ऑटो से आईटी, फार्मा से मीडिया तक, कई पहियों पर गाड़ी चलती है। गुजरात और राजस्थान ने भारी उद्योग और संसाधन-आधारित सेक्टर को लॉजिस्टिक्स से जोड़ा।
इंफ्रास्ट्रक्चर से उत्पादकता—पोर्ट (जैसे मुंबई-जेएनपीए, मुंद्रा, चेन्नई), फ्रेट कॉरिडोर, एक्सप्रेसवे और मेट्रो नेटवर्क ने सप्लाई चेन की लागत घटाई। यूपी के एक्सप्रेसवे, महाराष्ट्र का समुद्री इन्फ्रा, गुजरात के औद्योगिक कॉरिडोर और दक्षिण के बंदरगाह—ये सब मिलकर फैक्ट्री से बाजार तक का समय कम करते हैं।
मानव पूंजी और शहरों का रोल—आईटी और हाई-टेक सेवाओं के लिए स्किल्ड टैलेंट चाहिए। बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई और मुंबई को यही बढ़त मिली। अच्छे विश्वविद्यालय, रिसर्च इकोसिस्टम और स्टार्टअप संस्कृति ने नवाचार को गति दी।
नीतियां और निवेश—ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, सिंगल-विंडो सिस्टम, इंडस्ट्रियल पार्क, और टेलर-मेड इंसेंटिव्स ने विनिर्माण यूनिट्स को जगह दी। बड़े FDI और घरेलू निवेश आम तौर पर इन्हीं क्लस्टर्स में उतरते हैं, जिससे एक्सपोर्ट बेस बनता है और सप्लाई चेन स्थिर होती है।
प्रति व्यक्ति आय बनाम कुल GSDP—कुल आकार बताता है कि राज्य कितना उत्पादन करता है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय दिखाती है कि औसत नागरिक तक समृद्धि कितनी पहुंची। इसी वजह से सिक्किम, गोवा, दिल्ली जैसे छोटे राज्य औसत आय में बड़े औद्योगिक राज्यों से ऊपर दिखते हैं। नीति-निर्माता अब सिर्फ आकार नहीं, नागरिक आय और जीवन-गुणवत्ता सूचकों (स्कूलिंग, हेल्थ, शहरी सेवाएं) पर भी फोकस बढ़ा रहे हैं।
सेक्टर-वार नई धार—EV और इलेक्ट्रॉनिक्स में तमिलनाडु, महाराष्ट्र और तेलंगाना तेज़ी से निवेश आकर्षित कर रहे हैं। सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग के लिए गुजरात और कर्नाटक ने जमीन-नीति और पावर सप्लाई में आक्रामक तैयारी दिखाई है। फार्मा और वैक्सीन में हैदराबाद, अहमदाबाद और औरंगाबाद मजबूत क्लस्टर हैं। यूपी और एमपी में एग्री-प्रोसेसिंग व कोल्ड-चेन ग्रामीण आय बढ़ाने का रास्ता खोल रहे हैं।
जलवायु और ऊर्जा—रिन्यूएबल क्षमता (सोलर, विंड, ग्रीन हाइड्रोजन) में राजस्थान और गुजरात आगे हैं। औद्योगिक राज्यों के लिए सस्ती और विश्वसनीय बिजली प्रतिस्पर्धा का निर्णायक कारक बन गई है। गर्मी और जल-संकट जैसे जोखिमों को देखते हुए जल-प्रबंधन और ऊर्जा-कुशल तकनीक पर निवेश मजबूरी बन चुका है।
फिस्कल स्पेस और कैपेक्स—बड़े राज्यों ने पूंजीगत खर्च बढ़ाकर सड़कों, मेट्रो, औद्योगिक पार्कों और स्वास्थ्य-शिक्षा पर तेज़ी से काम किया है। टैक्स बेस चौड़ा करने और जीएसटी कंप्लायंस सुधारने से उन्हें स्थिर संसाधन मिले हैं, जिससे मल्टी-ईयर प्रोजेक्ट संभव हुए हैं।
अगली छलांग: 1-ट्रिलियन क्लब का लक्ष्य—महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश ने $1 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था का लक्ष्य रखा है। इसके लिए उन्हें हाई-वैल्यू मैन्युफैक्चरिंग, बुनियादी ढांचा, स्किल्स और शहरी सुधारों पर साथ-साथ बढ़ना होगा। जो राज्य निर्यात, नवाचार और शहरी सेवाओं को समान गति देंगे, वही सतत विकास पकड़ेंगे।
क्या देखें आगे
- प्रति व्यक्ति GSDP का रुझान: औसत आय कितनी तेज़ बढ़ रही है।
- निर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी: फैक्ट्रियों और सप्लाई चेन का फैलाव किन राज्यों तक पहुंचता है।
- निर्यात और लॉजिस्टिक्स: पोर्ट, कॉरिडोर और वेयरहाउसिंग की क्षमता कहाँ बन रही है।
- रोजगार गुणवत्ता: हाई-स्किल और मिड-स्किल जॉब्स का अनुपात, महिला भागीदारी।
- शहरीकरण और सेवाएं: मेट्रो, जल, कचरा प्रबंधन और डिजिटल पब्लिक इन्फ्रा से उत्पादकता में बढ़ोतरी।
तस्वीर साफ है—जहां विविधीकरण, अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर, स्किल्ड टैलेंट और स्थिर नीति है, वहां विकास टिकाऊ है। 2025 की रैंकिंग यही बताती है कि औद्योगिक क्लस्टर, आईटी-सेवाएं और पोर्ट-लॉजिस्टिक्स को जोड़कर बनाई गई रणनीति ही राज्यों को आगे धकेल रही है। छोटे-पर-समृद्ध राज्यों का प्रति व्यक्ति आय में उछाल और बड़े-पर-विविध राज्यों का कुल उत्पादन में दबदबा—दोनों साथ-साथ भारत की अगली वृद्धि-गाथा लिख रहे हैं।
टिप्पणि (18)
Anindita Tripathy
ये रैंकिंग देखकर लगता है कि भारत की असली ताकत शहरों में है, गांवों की नहीं। लेकिन अगर हम इन राज्यों के गांवों की बात करें, तो क्या वहां के लोग भी इस विकास का हिस्सा हैं? या फिर ये सिर्फ शहरी बाजारों का खेल है? मुझे लगता है कि अगर हम रोजगार और आय को गांव तक पहुंचाने की बजाय सिर्फ GDP बढ़ाने पर फोकस करेंगे, तो असली समानता कभी नहीं आएगी।
Shubham Ojha
महाराष्ट्र और तमिलनाडु की बात हो रही है, पर क्या कोई याद कर रहा है कि इन राज्यों में एक छोटा सा गुट बहुत सारी अमीरी पर कब्जा कर रहा है? जैसे बेंगलुरु के कुछ लोगों के पास एक घर की जगह पूरा कॉम्प्लेक्स है, और उसके बाहर एक बूढ़ा आदमी बस एक बर्तन में खाना खा रहा है। ये तो बस नए भारत का अंधेरा चेहरा है। आईटी के नाम पर जो बाजार बन रहा है, वो सिर्फ उनके लिए है जिनके पास इंग्लिश बोलने का अधिकार है।
Rajesh Dadaluch
गुजरात नंबर 4? बस इतना ही।
Jay Sailor
ये सब बातें बहुत सुंदर हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि ये सारी रैंकिंग एक बड़े नियोजन यंत्र का हिस्सा है? जो लोग ये डेटा देते हैं, वो निश्चित रूप से उन लोगों के साथ जुड़े हैं जो देश को एक अमेरिकी मॉडल में ढालना चाहते हैं। हमारी संस्कृति में समृद्धि का मतलब अकेले अमीर होना नहीं, बल्कि सबका खुश रहना है। आज तक जो भी राज्य बड़े बाजारों की ओर बढ़े, उनके गांवों में आत्महत्याएं बढ़ीं। ये नहीं समझते कि जीडीपी नहीं, जीवन की गुणवत्ता ही असली मापदंड है।
Deeksha Shetty
प्रति व्यक्ति आय का जिक्र हुआ तो सिक्किम और गोवा आगे हैं लेकिन क्या कोई बताएगा कि उनकी आबादी कितनी है? एक छोटे राज्य में 1000 अमीर लोग हों तो औसत बढ़ जाता है। ये डेटा बहुत धोखेबाज है। अगर आप वास्तविक आय का वितरण देखें तो दिल्ली के एक राजकीय कर्मचारी की आय और उसके पड़ोस के गार्ड की आय में 100 गुना का अंतर है। ये आंकड़े बस शहरी ऊपरी वर्ग के लिए हैं।
Subashnaveen Balakrishnan
मुझे लगता है कि हम जीडीपी को असली मापदंड बनाने की बजाय अपने आप को ये सोचना चाहिए कि हमारे बच्चे क्या सीख रहे हैं और उनके पास अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं हैं या नहीं। अगर एक राज्य में हर बच्चा स्कूल जा रहा है और हर बूढ़ा दवा ले रहा है तो उसकी GDP कम होने पर भी वह सफल है। हम बहुत ज्यादा आर्थिक आंकड़ों में खो गए हैं।
Nihal Dutt
सब ये बता रहे हैं कि राज्य आगे हैं लेकिन क्या कोई जानता है कि ये डेटा कहां से आया? मैंने सुना है कि एक राज्य का GDP उसके मुख्यमंत्री के दोस्तों के बिजनेस के नाम पर बढ़ा दिया जाता है। और जिन लोगों को ये डेटा दिखाया जा रहा है वो उसे भरोसे से पढ़ रहे हैं। ये सब एक बड़ा धोखा है। मैंने अपने गांव में देखा है कि एक लाख करोड़ का बजट बनाया गया लेकिन एक बर्तन भी नहीं बना।
vineet kumar
ये रैंकिंग तो बहुत अच्छी है लेकिन एक बात याद रखनी चाहिए कि जिन राज्यों की आर्थिक गतिविधि ज्यादा है वो ज्यादा ऊर्जा खपत करते हैं। और जिन राज्यों की आय कम है वो अक्सर ऊर्जा के लिए अन्य राज्यों पर निर्भर होते हैं। अगर हम अपनी आर्थिक विकास रणनीति को जलवायु स्थिरता के साथ जोड़ेंगे तो हम वास्तविक आगे बढ़ सकते हैं। गुजरात और राजस्थान में सौर ऊर्जा का विकास एक अच्छा उदाहरण है। अगर ये तकनीक अब छोटे राज्यों तक पहुंच जाए तो बहुत बड़ा बदलाव आएगा।
Pratyush Kumar
मुझे लगता है कि हमें ये समझना चाहिए कि राज्यों का विकास एक रेस नहीं, बल्कि एक साझा यात्रा है। महाराष्ट्र अग्रणी है तो उसके बाद उत्तर प्रदेश भी तेजी से आगे बढ़ रहा है। ये अच्छी बात है। लेकिन अगर हम इसे एक लड़ाई बना दें तो जो राज्य पीछे रह जाएंगे वो अपने आप को छोड़ देंगे। हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि जिन राज्यों के पास संसाधन कम हैं उन्हें अधिक समर्थन मिले। वरना ये असमानता बढ़ती रहेगी।
DHEER KOTHARI
ये डेटा देखकर बहुत अच्छा लगा। जैसे बेंगलुरु का टेक सेक्टर या हैदराबाद की फार्मा इंडस्ट्री तो वाकई दुनिया भर में नाम कमा रही है। मैं अपने दोस्त से बात कर रहा था जो बेंगलुरु में काम करता है और वो कह रहा था कि वहां एक छोटा सा स्टार्टअप भी दुनिया भर के कंपनियों के साथ काम कर रहा है। ये भारत की असली ताकत है। हमें इसे बढ़ावा देना चाहिए।
nishath fathima
मुझे लगता है कि ये सब बातें बहुत अच्छी हैं लेकिन जब तक हमारे यहां लड़कियों को शिक्षा नहीं मिलेगी तब तक कोई विकास नहीं होगा। आज भी बहुत से गांवों में लड़कियों को पढ़ाने के बजाय शादी करा दिया जाता है। अगर हम लड़कियों को शिक्षित करेंगे तो वो घर में भी बदलाव लाएंगी और बाहर भी। ये सिर्फ GDP नहीं, ये तो समाज का बदलाव है।
tejas maggon
कर्नाटक के बेंगलुरु में आईटी कंपनियां बस लोगों के डेटा चुरा रही हैं। और फिर वो उसे अमेरिका को बेच रही हैं। ये नहीं बताते कि जो लोग यहां काम करते हैं वो अपने घरों में बिजली नहीं पाते। ये सब एक बड़ा झूठ है।
Keshav Kothari
सब ये बातें बहुत बार-बार सुन चुके हैं। इसमें कुछ नया नहीं है।
abhimanyu khan
जब हम राज्यों की आर्थिक रैंकिंग की बात करते हैं तो हम यह भूल जाते हैं कि ये सब एक निर्माण का उत्पाद है-एक नियंत्रित, राजनीतिक रूप से चुनिंदा और बहुत अधिक विश्लेषणात्मक विश्लेषण का उत्पाद। जीडीपी केवल एक आर्थिक संकेतक है, जो सामाजिक समृद्धि, वातावरणीय लागत, या मानवीय विकास को नहीं दर्शाता। यदि हम एक राज्य के वास्तविक विकास को मापना चाहते हैं, तो हमें एचडीआई, जीवन अपेक्षा, शिक्षा अनुपात, और आत्महत्या दर जैसे सूचकों को शामिल करना होगा। यह एक निष्पक्ष विश्लेषण है, जिसमें वित्तीय लाभ के बजाय मानवीय निष्कर्ष पर बल दिया जाता है।
Ronak Samantray
सिक्किम की आय ज्यादा है? वो भी नहीं। ये सब डेटा अमेरिका के लिए बनाया गया है ताकि वो भारत को एक अलग तरह का देश दिखाएं। असल में हर राज्य में बस एक तरफ अमीर हैं और दूसरी तरफ भूखे। ये डेटा बस एक धोखा है। 😒
Ratna El Faza
मुझे लगता है कि अगर हम अपने गांवों में इंटरनेट और डिजिटल सुविधाएं दे दें तो वहां के लोग भी ऑनलाइन काम कर सकते हैं। बहुत से लोग घर बैठे फ्रीलांसिंग कर रहे हैं। अगर हम इसे बढ़ावा दें तो गांव भी आगे बढ़ सकते हैं।
Viraj Kumar
यह लेख अत्यंत विवादास्पद है क्योंकि यह आर्थिक सूचकों को नागरिक अधिकारों के बजाय प्राथमिकता देता है। यदि एक राज्य में नागरिकों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा और सुरक्षा नहीं मिल रही है, तो उसकी जीडीपी कितनी भी अधिक क्यों न हो, वह वास्तविक विकास नहीं है। इसलिए, यह लेख एक गलत नैतिक आधार पर आधारित है और एक आर्थिक दुरुपयोग को सामान्यीकृत करता है।
Anil Tarnal
मैं तो बस यही कहना चाहता हूं कि जब तक हमारे यहां लोगों को अपनी नौकरी नहीं मिल रही, तब तक ये सब आंकड़े बस एक बड़ा धोखा हैं। मेरे भाई को तीन साल से नौकरी नहीं मिली। और यहां लिखा है कि तमिलनाडु आगे है। क्या ये उसके लिए भी आगे है? नहीं। ये सब बस एक बड़ा झूठ है।