DUSU Election 2025: ABVP ने तीन पद जीते, NSUI को उपाध्यक्ष की कुर्सी

DUSU Election 2025: ABVP ने तीन पद जीते, NSUI को उपाध्यक्ष की कुर्सी

DUSU Election 2025 का नतीजा साफ है—दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्र राजनीति में ABVP ने जोरदार वापसी की है। चार में से तीन पद उसके खाते में गए, जबकि NSUI ने उपाध्यक्ष की प्रतिष्ठित सीट बचा ली। यह बदलाव 2024 के मुकाबले बड़ा है, क्योंकि पिछले साल NSUI ने सात साल बाद अध्यक्ष पद जीता था। इस बार कहानी उलटी दिखी।

कौन जीता, कितने वोटों से—पूरी तस्वीर

काउंटिंग शुक्रवार, 19 सितंबर 2025 को यूनिवर्सिटी स्पोर्ट्स स्टेडियम के मल्टीपर्पज़ हॉल में कड़ी निगरानी में हुई। CCTV, नामित पर्यवेक्षकों और चरणबद्ध गणना की प्रक्रिया के बीच रिजल्ट शाम तक साफ होने लगे। वोटिंग लगभग 40% रही, जिसे संभालने के लिए दिन और शाम की कक्षाओं को ध्यान में रखते हुए दो शिफ्ट में मतदान कराया गया।

अध्यक्ष पद पर ABVP के आर्यन मान ने 28,841 वोट लेकर निर्णायक जीत दर्ज की। NSUI की उम्मीदवार जोसलिन नंदिता चौधरी 12,645 वोटों पर रहीं। लेफ्ट समर्थित AISA-SFI गठबंधन की अंजलि 5,385 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर आईं, जबकि एक निर्दलीय (NSUI से नाराज़ बताए गए) उम्मीदवार ने 5,522 वोट ले लिए—यह वोट बिखराव परिणाम पर असर डालता दिखा।

उपाध्यक्ष पद पर तस्वीर उलट गई। NSUI के राहुल झांसला ने 29,339 वोट लेकर बढ़त कायम रखी। ABVP के गोविंद तंवा 20,547 वोटों पर रहे और AISA-SFI के सोहन को 4,163 वोट मिले। यह सीट बताती है कि कैंपस में क्रॉस-ओवर वोटिंग हुई और उपाध्यक्ष के लिए NSUI को व्यापक समर्थन मिला।

सचिव पद पर ABVP के कुनाल चौधरी 23,779 वोट लेकर जीत गए। NSUI को 16,177 वोट और AISA-SFI को 9,535 वोट मिले। संयुक्त सचिव की सीट भी ABVP के पास गई, जहां दीपिका झा ने 21,825 वोट हासिल किए। यहां NSUI को 17,380 और AISA-SFI को 8,425 वोट मिले।

अगर आप वोटों की धार देखें, तो अध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव पर ABVP की पकड़ साफ दिखती है, जबकि उपाध्यक्ष पर NSUI की पकड़ मजबूत है। एक सिरे से साफ बहुमत नहीं, बल्कि पद-दर-पद अलग चुनावी गणित दिखा—यही DUSU की राजनीति को दिलचस्प बनाता है।

एजेंडा, कैंपस की चिंताएं और आगे का रास्ता

एजेंडा, कैंपस की चिंताएं और आगे का रास्ता

इस चुनाव में मुद्दों की कमी नहीं थी। ABVP के आर्यन मान ने कैंपस-लिंक्ड कामकाज पर जोर दिया—सब्सिडाइज़्ड मेट्रो पास, पूरे कैंपस में मुफ्त वाई-फाई, दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए एक्सेसिबिलिटी ऑडिट, और खेल सुविधाओं का विस्तार। ये वादे रोज़मर्रा की मुश्किलों से सीधे जुड़े लगते हैं, खासकर उन छात्रों के लिए जो दूर-दराज़ से आते हैं और रोज़ाना सफर करते हैं।

NSUI की जोसलिन ने हॉस्टल की कमी, कैंपस सुरक्षा और छात्राओं के लिए मेन्स्ट्रुअल लीव जैसे संवेदनशील और व्यावहारिक मुद्दे उठाए। AISA-SFI की अंजलि ने जेंडर सेंसिटाइज़ेशन, फीस बढ़ोतरी की वापसी और शिकायत निवारण तंत्र की बहाली पर जोर दिया। यानी, तीनों खेमों ने अलग-अलग प्राथमिकताएं सामने रखीं—ट्रांसपोर्ट से लेकर सुरक्षा और संस्थागत जवाबदेही तक।

रिज़ल्ट यह भी बताता है कि वादों की काट पद-दर-पद अलग रही। उदाहरण के लिए, जहां ट्रांसपोर्ट और कैंपस इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे ‘सर्व-छात्र’ मुद्दों पर ABVP को मजबूत समर्थन दिखा, वहीं उपाध्यक्ष पद पर NSUI की बढ़त बताती है कि हॉस्टल, सुरक्षा और छात्र कल्याण की लाइन भी गूंजदार रही।

चुनाव प्रचार शांत नहीं था, लेकिन इस बार पोस्टर-पर्चों पर की गई सख्ती और डिजिटल कैंपेनिंग का असर दिखा। सोशल मीडिया, कक्षा-दर-कक्षा पहुंच, और सोसायटी-आधारित संवाद—इन तीन स्तरों की रणनीतियां दिखीं। काउंटिंग के दौरान व्यवस्था कड़ी रही। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने निगरानी बढ़ाई और संवेदनशील बूथों पर अतिरिक्त स्टाफ लगाया गया।

NSUI के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरुण चौधरी ने आरोप लगाया कि पार्टी को ABVP के साथ-साथ विश्वविद्यालय प्रशासन, दिल्ली सरकार, केंद्र, RSS-BJP और दिल्ली पुलिस के “संयुक्त असर” से लड़ना पड़ा। यह राजनीतिक बयान चुनाव की गर्माहट दिखाता है। आधिकारिक तौर पर इन आरोपों पर कोई विस्तृत प्रतिक्रिया सामने नहीं आई।

पिछले साल की तुलना भी जरूरी है। 2024 में NSUI ने सात साल बाद अध्यक्ष पद जीता था—यह प्रतीकात्मक जीत थी। 2025 में ABVP ने तीन पद जीतकर बढ़त फिर से हासिल की, लेकिन उपाध्यक्ष की सीट NSUI के पास रहने से विपक्ष की मौजूदगी भी मजबूत रहेगी। यानी, छात्रसंघ में संतुलन और बहस दोनों जारी रहेंगे।

अब असल परीक्षा शुरू होती है—वादे जमीन पर कैसे उतरेंगे? छात्रों की प्राथमिक सूची लंबी है: हॉस्टल की सीटें बढ़ें, लाइब्रेरी और रीडिंग रूम देर रात तक खुलें, लेट-ईवनिंग क्लासेज़ के बाद सुरक्षित ट्रांसपोर्ट मिले, लैंगिक संवेदनशीलता पर अनिवार्य ट्रेनिंग हो, और दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए क्लासरूम से लेकर ऑडिटोरियम तक समुचित रैम्प, लिफ्ट और शौचालय उपलब्ध हों।

खेल सुविधाओं को लेकर भी उम्मीदें हैं—खुले मैदानों की बुकिंग में पारदर्शिता, महिला खिलाड़ियों के लिए अलग टाइम-स्लॉट और बेसिक स्पोर्ट्स साइंस सपोर्ट। टेक्नोलॉजी फ्रंट पर कैंपस-वाइड वाई-फाई, डिजिटल आईडी, और ग्रिवांस पोर्टल की समयबद्ध मॉनिटरिंग जैसे कदम तुरंत असर दिखा सकते हैं।

फीस और वित्तीय मदद बड़ा मुद्दा बना रहेगा। कई कॉलेजों में पिछले सालों में अलग-अलग मदों में शुल्क बढ़ोतरी हुई है। छात्र चाहते हैं कि जरूरतमंदों के लिए आपात सहायता और फीस डिफरल की व्यवस्था साफ, तेज और बिना भेदभाव के चले।

याद रहे, DUSU केवल छात्र राजनीति की प्रयोगशाला नहीं, यह राष्ट्रीय राजनीति का बैकयार्ड भी माना जाता है। अरुण जेटली, विजय गोयल, अजय माकन जैसे नाम यहीं से उभरे। इसीलिए हर नतीजे का व्यापक राजनीतिक मतलब भी निकाला जाता है—कैंपस का मूड कौन पढ़ रहा है, कौन खो रहा है।

प्रोसेस की बात करें तो इस बार भी वोटिंग दो शिफ्ट में हुई ताकि डे और ईवनिंग कॉलेज के विद्यार्थी शामिल हो सकें। कई कॉलेजों में कतारें व्यवस्थित रहीं, कुछ जगहों पर पीक टाइम में दबाव बढ़ा, लेकिन कुल मिला कर मतदान बिना बड़े व्यवधान के पूरा हुआ। कॉलेज-वार नतीजों का विस्तृत ब्रेकअप आधिकारिक तौर पर जारी नहीं किया गया था, इसलिए अलग-अलग कॉलेजों—जैसे एस.पी. मुखर्जी कॉलेज—की सीट-स्तरीय गणित पर स्पष्ट डेटा सामने नहीं आया।

अब नई टीम के सामने शुरुआती 100 दिनों का एजेंडा तय करना होगा। छात्रसंघ, डीन ऑफ स्टूडेंट्स वेलफेयर और कॉलेज प्रशासन के साथ मिलकर अगर टाइम-बाउंड कार्ययोजना पेश कर दे—जैसे मेट्रो पास पर औपचारिक बातचीत की समयसीमा, वाई-फाई रोलआउट का रोडमैप, एक्सेसिबिलिटी ऑडिट की तारीखें—तो भरोसा तेजी से बनेगा।

अंत में, एक बात साफ है: यह जनादेश एकतरफा नहीं है। मतदाताओं ने अलग-अलग पदों पर अलग संदेश दिया है—काम दिखेगा तो समर्थन टिकेगा। DUSU की राजनीति में यही असली कसौटी है।