फिल्म 'जिगरा' की कहानी:
फिल्म 'जिगरा' की कहानी आलिया भट्ट के किरदार 'सत्या' पर केंद्रित है, जो अपने भाई अंकुर के लिए हर संभव प्रयास करती है, जिसे एक दूर-दराज के दक्षिण पूर्व एशियाई द्वीप में ड्रग स्कैम में झूठा फंसाया गया है।
इस फिल्म की शुरुआत बहुत ही रोचक और संवेदनशील होती है जहां निर्देशक वसन बाला ने सत्या और अंकुर के बचपन के दृश्य दिखाकर उनके रिश्ते की गहराई को महसूस कराया है। इन फ्लैशबैक के माध्यम से, दर्शकों को दोनों भाई-बहनों के बीच के अटूट बंधन का एहसास होता है।
आलिया भट्ट का अद्वितीय प्रदर्शन:
आलिया भट्ट ने इस फिल्म में पहले से भिन्न और नए तरह के किरदार में दमदार अभिनय किया है। जहां उनके द्वारा व्यक्त की गई क्रोध की झलकियाँ सबसे खास है। वह फिल्म में अपने हर दृश्य में इतनी गहराई ले आती हैं कि उनके इमोशन वास्तविक लगते हैं। निर्देशक वसन बाला की इस फिल्म में उनके अभिनय के हर पहलू का अनुसरण बहुत ही सरल और सटीक तरीके से किया गया है।
कहानी और निर्देशन में खामियाँ:
हालांकि, फिल्म जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, कहानी एक सीधी-सी साधी और एक आयामी बन जाती है। यह कहानी अधिकतर आलिया भट्ट के इर्द-गिर्द घूमती रहती है लेकिन इस प्रक्रिया में एक सजीव और सम्मोहक कहानी मुश्किल से बन पाती है। भाई-बहन का संबंध जिसका फिल्म में बहुत महत्व है, वह प्रभावी तरीके से नहीं उभर पाता। मनोज पाहवा जैसे सहायक किरदारों को अंकुर से भी बेहतर कहानी और गहराई दी गई है।
फिल्म का अंत भी दर्शकों को थका देने वाला और बेहद खिंचा-खिंचा लगता है। भावनात्मक रूप से कमजोर इस क्लाइमैक्स का समापन होता है, जो कि कहीं भी दर्शकों को संतोषजनक रूप से जोड़ नहीं पाता।
कुल मिलाकर:
राजकुमार राव की 'जिगरा' आलिया भट्ट के करियर के लिए एक अच्छी फिल्म साबित हो सकती है, लेकिन जहाँ तक कहानी या फिल्म के संदेश की बात है, यह दर्शकों को बांधने में असफल होती है। फिल्म का सबसे बड़ा दोष यह है कि सत्या उस परिवार का सामना नहीं कर पाती जिसने उसके भाई के खिलाफ साजिश रची थी। कुल मिलाकर, यह फिल्म दर्शकों को आलिया भट्ट की अदाकारी तो जरूर दिखाती है, लेकिन एक सम्मोहक कहानी देने में चूक जाती है।
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