उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित महारानी लक्ष्मी बाई मेडिकल कॉलेज में शुक्रवार की रात एक भयावह अग्निकांड में 10 नवजात शिशुओं की दर्दनाक मौत हो गई। यह घटना उस समय हुई जब अस्पताल के नवजात गहन चिकित्सा इकाई (NICU) में रात करीब 10:45 बजे आग लगी। इस हादसे में 16 अन्य नवजात गंभीर रूप से घायल हो गए, जिन्हें स्थानीय अस्पतालों में उपचार दिया जा रहा है। इस त्रासदी ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है और लोगों के मन में अस्पताल सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
अग्निकांड के कारणों की जांच
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दुर्घटना के कारणों की जांच के लिए एक चार सदस्यीय समिति गठित की है। इस समिति का नेतृत्व चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण के महानिदेशक करेंगे। उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि आग कैसे लगी, इसके पीछे क्या कारण थे और क्या कोई लापरवाही बरती गई थी। समिति को एक सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है।
अस्पताल में भीड़भाड़ और दोषियों की भूमिका
अस्पताल के NICU में क्षमता से ज्यादा बच्चे भरे हुए थे। इसकी क्षमता 18 है, लेकिन आग लगने के समय 49 नवजात बच्चे इलाजरत थे। इसके लिए एक नया 51-बेड का NICU जो अभी हाल ही में बना था, जल्द ही शुरू होने का इंतजार कर रहा था, लेकिन वो समयानुसार शुरू नहीं हो पाया। उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि फरवरी में अग्नि सुरक्षा ऑडिट और जून में मॉक ड्रिल का आयोजन हुआ था, जबकि चश्मदीद गवाहों का कहना है कि घटना के समय अलार्म काम नहीं कर रहे थे।
पीड़ित परिवारों के लिए मुआवजा
राज्य सरकार ने इस हादसे में मारे गए बच्चों के परिवारों को 5 लाख रुपये और घायलों के लिए 50,000 रुपये की सहायता की घोषणा की है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस हादसे पर गहरा दुख व्यक्त किया है।
विपक्ष का आरोप और प्रशासन की कार्यवाही
उधर, विपक्षी दलों ने अस्पताल प्रशासन पर गंभीर लापरवाही का आरोप लगाया है। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने दोषियों के खिलाफ कठोर कार्यवाही की मांग की है। इस त्रासदी के बाद जैसे-जैसे समय बीत रहा है, इस दुर्घटना को लेकर सामाजिक और राजनीतिक हलकों में चर्चाएँ तेज हो गई हैं। असामाजिक परिस्थितियों में अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्थाओं की सच्चाई सामने आ रही है और प्रशासन को इसे दुरुस्त करने के लिए गंभीरता से सोचना होगा।
पोस्टमार्टम और उपचार
शनिवार को सात शिशुओं के पोस्टमार्टम किये गए, जबकि तीन शिशुओं के माता-पिता की पहचान न होने के कारण उनके शवों का पोस्टमार्टम अभी तक नहीं किया जा सका है। घायल बच्चों के जीवन को बचाने के लिए चिकित्सक पूरी मेहनत कर रहे हैं। इस दर्दनाक घटना ने स्वास्थ्य विभाग के संपूर्ण व्यवस्था पर कई प्रश्नचिन्ह लगा दिए हैं। सरकार और स्वास्थ्य विभाग को अब यह समझना होगा कि ऐसी घटनाएँ दोबारा ना हों, इसके लिए ठोस उपाय करने की आवश्यकता है।
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