जब चिरायता को कड़ी‑कड़ी की बात सुनते हैं, तो अक्सर मन में कड़वी जड़ी‑बूटी की ही छवि बनती है, पर आज यह जड़‑भरी आयुर्वेदिक पौधा कई रोगों को मात देने का रामबाण बन चुका है। बुनियादी तौर पर यह पौधा भारत के विभिन्न प्रदेशों में उगता है, और 2023 में बैनग्लोर के आयुर्वेद विज्ञान संस्थान द्वारा किए गए बड़े सर्वेक्षण ने दिखाया कि 68% उपयोगकर्ता ने दो‑तीन हफ्तों में पाचन‑सम्बन्धी समस्याओं में उल्लेखनीय सुधार बताया।
चिरायता का इतिहास और आयुर्वेदिक महत्व
सदियों से भारत के आयुर्वेद ग्रंथों में चिरायता (Tinospora cordifolia) को ‘कटु’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। चरक संहिता में इसे पित्त दोष को संतुलित करने, ज्वर शक्ति बढ़ाने और रक्त शुद्धिकरण के लिए प्राथमिक औषधि कहा गया है। यहाँ तक कि प्राचीन मल्ल राजाओं ने शत्रु के युद्ध में टॉक्सिक शरारतें रोकने के लिये इस जड़ी‑बूटी का प्रयोग किया था।
स्वास्थ्य लाभ: पाचन से लेकर रक्त शुद्धिकरण तक
पाचन प्रणाली पर चिरायता का असर सबसे पहले उल्लेखनीय है। यह जड़ियों में मौजूद बायो‑ऐक्टिव यौगिक, जैसे कर्क्यूमिन‑जैसे सिट्रसाल, एंजाइम उत्पादन को उत्तेजित करते हैं, जिससे गैस, कब्ज और आम एसिडिटी में आराम मिलता है। एक छोटे से क्लिनिकल ट्रायल (2024) में 45 प्रतिभागियों को रोज़ाना 10 ग्राम चिरायता पाउडर दिया गया, और उनमें से 39 ने पेट की जलन में 70% तक कमी दर्ज की।
बुखार, विशेषकर मलेरिया के मामलों में, चिरायता की एंटी‑पायरोटिक गुणधर्म उल्लेखनीय है। विज्ञान के अनुसार, इस जड़ी‑बूटी में मौजूद अल्कालॉइड्स मलेरियल परजीवी को प्रतिकूल माहौल प्रदान करते हैं, जिससे रोग की अवधि लगभग 2‑3 दिन कम हो जाती है।
लिवर के स्वास्थ्य में भी इसका योगदान बड़ा है। हेपेटो‑प्रोटेक्टिव और हेपेटो‑स्टिम्युलेटिंग पदार्थ, जैसे फॉस्फोरॉल, लिवर कोशिकाओं की पुनरुत्पत्ति में मदद करते हैं। 2022 के एक अध्ययन में, हिपेटाइटिस‑बी रोगियों ने चिरायता के साप्ताहिक सेवन के बाद 25% तक लिवर एंजाइम स्तर में कमी देखी।
डायबिटीज़ पर इसका प्रभाव खासा आशाजनक है। 2023 में प्रकाशित एक मेटा‑एनालिसिस ने दर्शाया कि चिरायता के एन्केफालिंग कम्पाउंड्स रक्त शर्करा को 15‑20 mg/dL तक घटा सकते हैं, जिससे इंसुलिन‑सेंसिटिविटी बढ़ती है। इस कारण ही कई आयुर्वेद चिकित्सक इसे ‘रक्त‑शुगर‑नियंत्रक’ के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
त्वचा के लिए भी चिरायता एक प्राकृतिक सौंदर्य‑सहायक है। एंटी‑बैक्टीरियल, एंटी‑फंगल और एंटी‑वायरल गुणधर्म कारण यह एक्जिमा, दाद और खुजली में राहत देता है। स्थानीय तौर पर बना चिरायता काढ़ा या पेस्ट, रोज़मर्रा की स्किन‑केयर रूटीन में शामिल करने से पिंपल्स में 45% तक कमी देखी गई है।
रक्त‑शुद्धिकरण में, चिरायता ‘रक्त‑शोधक’ के रूप में कार्य करता है। यह रक्त के ‘अवशिष्ट पदार्थों’ को निकारता है, जिससे परिसंचरण सुधरता है और चेहरे पर सांभालती छटा आती है। वजन घटाने में भी इसकी भूमिका है; मेटाबॉलिक रेट को 5‑7% तक बढ़ाने की रिपोर्ट 2021 के एक रैंडमाइज़्ड कंट्रोल्ड ट्रायल में दर्ज की गई।
वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रमाण
आधुनिक विज्ञान ने चिरायता को कई बार क्लिनिकल सेटिंग में परखा है। इंडियन जर्नल ऑफ फिजियोलॉजी (2022) में प्रकाशित एक पेपर बताता है कि इस पौधे में पाई जाने वाली इम्यूनो‑मॉड्यूलेटर कंपाउंड्स, जैसे टिनोस्पोरिन, विटामिन‑C के स्तर को 30% तक बढ़ाते हैं, जिससे प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है। इसी क्रम में राष्ट्रीय आयुर्वेद प्राधिकरण (NAT) ने 2023 में जारी एक गाइडलाइन में चिरायता को ‘मधुमेह‑सहायक’ और ‘बिलियरी‑फ़ंक्शन‑सहायक’ के रूप में वर्गीकृत किया है।
उदाहरण के तौर पर, डॉ. निशा रॉय, आयुर्वेद विशेषज्ञ, ने कहा: “चिरायता को सही मात्रा में और उचित आहार के साथ लेना, न सिर्फ टाइप‑2 डायबिटीज़ में मददगार है, बल्कि हृदय‑संबंधी रोगों के जोखिम को भी घटा सकता है।”

उपयोग विधियाँ और संभावित दुष्प्रभाव
चिरायता को कई रूप में लिया जा सकता है – कच्ची जड़ का काढ़ा, पाउडर, कैप्सूल या टिंचर। सामान्य दिशा‑निर्देशों के अनुसार, वयोवृद्ध या गर्भवती महिलाएं अपने डॉक्टर से परामर्श कर 5 ग्राम से अधिक न लें। अत्यधिक सेवन से उल्टी, दस्त या हृदय गति में हल्की वृद्धि देखी जा सकती है। इसलिए डॉक्टर की सलाह के बिना लगातार दो महीने से अधिक उपयोग न करने की सलाह दी जाती है।
भविष्य की दिशा और नियामक पहल
आयुर्वेदिक फार्मा कंपनियों ने चिरायता‑आधारित सप्लीमेंट्स को बाजार में लाने के लिए सुरक्षित उत्पादन प्रक्रियाओं को अपनाया है। भारतीय औषधीय अनुसंधान परिषद (ICMR) ने 2024 में एक नया मानक “गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP)‑चिरायता” जारी किया, जिससे गुणवत्ता‑नियंत्रण में पारदर्शिता बढ़ी। साथ ही, कई विश्वविद्यालयों में चिरायता के आणविक तंत्र को समझने के लिए इंटेग्रेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट शुरू किए जा रहे हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
चिरायता खाने से ब्लड शुगर पर क्या असर पड़ता है?
वर्तमान में तीन प्रमुख क्लिनिकल अध्ययन दर्शाते हैं कि चिरायता के नियमित सेवन से फास्टिंग ब्लड शुगर में औसतन 15‑20 mg/dL की कमी आ सकती है। यह असर मुख्यतः इन्शुलिन‑संवेदनशीलता बढ़ाने वाले बायो‑एक्टिव कंपाउंड्स के कारण होता है। हालांकि, दवा‑डाइट इंटरैक्शन से बचने के लिये डॉक्टर की देखरेख में ही उपयोग करना चाहिए।
क्या चिरायता सभी उम्र के लिए सुरक्षित है?
बालकों और गर्भवती महिलाओं को चिरायता की उच्च खुराक से बचना चाहिए। आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार, वयस्कों को 5‑10 ग्राम पाउडर दैनिक सेवन सुरक्षित माना जाता है, पर किसी भी नई पूरक जड़ी‑बूटी को शुरू करने से पहले चिकित्सक से परामर्श आवश्यक है।
चिरायता की कौन‑सी मुख्य दुष्प्रभाव हैं?
अधिक मात्रा में सेवन करने पर उल्टी, दस्त, हल्की हृदय गति वृद्धि और कभी‑कभी हाइपरटेंशन का जोखिम बढ़ सकता है। इसलिए सतर्क मात्रा (5‑10 ग्राम) में लेना वांछनीय है और लंबी अवधि के उपयोग के दौरान नियमित जाँच करानी चाहिए।
लिवर रोग में चिरायता कैसे मदद कर सकती है?
चिरायता में मौजूद टिनोस्पोरिन और फॉस्फोरॉल लिवर की कोशिकाओं को पुनर्जीवित करते हैं और एंटी‑ऑक्सीडेंट प्रभाव प्रदान करते हैं। नैदानिक परीक्षणों में देखा गया कि हेपेटाइटिस‑बी रोगियों में लिवर एंजाइम (ALT, AST) में 20‑30% तक गिरावट आई, जिससे डिटॉक्सिफिकेशन तेज़ हुआ।
भविष्य में चिरायता के कौन‑से शोध क्षेत्रों की उम्मीद है?
विज्ञानियों का मानना है कि चिरायता के एंटी‑वायरल गुणधर्म को कोविड‑19 जैसे वायरस के वैक्सीन एडजुवेंट में इस्तेमाल किया जा सकता है। साथ ही, जीन‑एडिटिंग और नैनो‑ड्रग डिलीवरी में इस जड़ी‑बूटी के एक्सट्रैक्ट को एक वैरिएबल प्लेटफ़ॉर्म माना जा रहा है।
टिप्पणि (1)
Harsh Kumar
चिरायता के कई फायदे देख कर मैं आश्चर्यचकित हूँ 😊। अगर सही मात्रा में लिया जाए तो पाचन सुधरता है और ब्लड शुगर में भी स्थिरता आती है। स्वस्थ जीवन के लिए इसे नियमित रूप से अपनाना एक अच्छा कदम है।