जब संदीप रायचुरा, डायरेक्टर of पीएल कैपिटल ने कहा कि सोने की कीमतें अगले साल 1.44 लाख रुपये प्रति 10 ग्राम तक पहुँच सकती हैं, तो भारतीय निवेशकों की दिलचस्पी तीव्र हो गई है। यह बयान 2025 के मध्य में आया, जब 2025 में सोने की कीमतों का उछाल ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में $3,977.44 प्रति औंस का नया रिकॉर्ड बनाया था। भारत में 10‑ग्राम 24‑कैरेट सोना 1,20,000 रुपये की सीमा को पार कर चुका था, और रूटीन चेक में ही इसे नई ऊँचाई पर देखना ठीक उसी बात जैसा है जैसे 2008 के वित्तीय संकट में सोने की कीमतें दो गुना हो गई थीं।
इतिहास और पृष्ठभूमि
सोना हमेशा से आर्थिक असुरक्षा के समय में 'सुरक्षित एसेट' माना गया है। 2008‑2011 के बीच, वैश्विक वित्तीय तूफान ने सोने की कीमतों को लगभग 100% तक उछाल दिया था। उसी तरह 2020‑2021 की कोविड‑19 बाद की रिकवरी में 53% की बढ़त मिली थी। अब 2025 में हम देख रहे हैं कि वही पैटर्न फिर से दोहराया जा रहा है, लेकिन इस बार कई नई चालों के साथ।
एक प्रमुख कारण फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति में परिवर्तन है। सितंबर 2025 में अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने बेसिक रेट को 0.25% घटाया, जिससे डॉलर का मूल्य गिरा और निवेशकों को सोने की ओर मोड़े। दूसरे शब्दों में, कम ब्याज दरों ने बाजार को इकोनॉमी को सपोर्ट करने के लिए तरलता दी, और एक साथ ही महंगाई के डर ने सोने को एक ‘हेज’ बना दिया।
सोने की कीमतों में तेज़ी के मुख्य कारण
- फेडरल रिजर्व की दर कटौती – डॉलर के मूल्य में कमी के साथ सोना सस्ता हो गया।
- अमेरिकी सरकार का शटडाउन और फ्रांस सरकार में राजनीतिक अस्थिरता ने बाजार में अनिश्चितता बढ़ाई।
- वैश्विक महंगाई की आशंका – जब उपभोक्ता कीमतें बढ़ती हैं, तो निवेशक वास्तविक संपत्ति में भरोसा रखते हैं।
- भू‑राजनीतिक तनाव – मध्य‑पूर्व में चल रहे टकराव और यू‑चीन ट्रेड वार्निंग्स भी सोने को ‘सुरक्षित बंदरगाह’ बनाते हैं।
इन कारकों का प्रभाव केवल डॉलर कमजोरी तक सीमित नहीं है। अमित गोयल, वेल्थ मैनेजर at मनीकंट्रोल ने कहा, “जब डॉलर या तो कमजोर हो रहा हो या लगातार नीचे जा रहा हो, तो सोना और चांदी की कीमतें तेज़ी से बढ़ती हैं।” लेकिन उन्होंने चेतावनी दी कि इतिहास इस पैटर्न के बाद अक्सर एक तेज़ी‑बिकवाली की लहर लेकर आती है।
विशेषज्ञों की राय और भविष्य की संभावनाएँ
गोल्ड मार्केट के अनुभवी विश्लेषक किरन वर्मा (बजट एनोवेटर्स) का मानना है कि 2025 में सोने की कीमतों का 49% वार्षिक उछाल “अस्थायी” हो सकता है, क्योंकि अगर वैश्विक इक्विटी मार्केट्स में स्थिरता आती है तो निवेशकों का पोर्टफ़ोलियो पुनः रीबैलेंस हो सकता है। वहीं, यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ECB) के एक इनसाइडर ने सूचित किया कि अगर ईयू में महंगाई 5% से अधिक बनी रही तो उनके अपने कड़े उपाय सोने की मांग को फिर से बढ़ा सकते हैं।
एक और रोचक पहलू यह है कि डिजिटल एसेट्स, खासकर क्रिप्टोकरेंसी, भी सोने की खपत को प्रभावित कर रहे हैं। युवा निवेशकों में बिटकॉइन के आकर्षण ने कम कीमत पर सोने को ‘फैशन’ बनाकर रखा है, लेकिन अभी तक यह ट्रेंड सोने की कीमतों को उलट नहीं पाया है।
निवेशकों के लिए जोखिम और रणनीति
सोने में निवेश करने वाले लोगों को दो‑तीन विकल्पों पर ध्याण देना चाहिए:
- यदि आपका लक्ष्य अल्प‑कालिक प्रॉफिट है, तो वर्तमान उच्च स्तर पर कुछ हिस्सा बेच कर नकद में बदला जा सकता है।
- दीर्घकालीन हेज के रूप में सोना रखने वाली रणनीति अभी भी काम कर सकती है, खासकर अगर महंगाई दो‑तीन साल तक बनी रहे।
- भविष्य के गिरावट के जोखिम को कम करने के लिए गोल्ड ETFs या सॉतेनरी कॉन्ट्रैक्ट्स में छोटे‑छोटे हिस्से बनाकर पोर्टफ़ोलियो विविधित किया जा सकता है।
ध्यान रखें, अगर वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार होते हैं और इक्विटी बाजारों में तेज़ी आती है, तो निवेशक सोने से दूर होकर शेयरों की ओर रुख कर सकते हैं। यही वह क्षण होगा जब बबल फटने की संभावना सबसे अधिक रहती है।
प्रमुख आँकड़े और टेबल
| वर्ष/त्रैमासिक | औसत गोल्ड कीमत (USD/औंस) | भारत में 10 ग्राम (₹) |
|---|---|---|
| 2023 Q4 | 1,850 | 96,500 |
| 2024 Q2 | 2,210 | 1,05,000 |
| 2025 Q1 | 3,850 | 1,20,000 |
| 2025 Q3 (प्रोजेक्टेड) | 4,200 | 1,44,000 |
ऊपर दिया गया डेटा दिखाता है कि 2025 में रेखा कितनी तीव्रता से ऊपर उठ रही है, और क्यों विशेषज्ञ अगले कुछ हफ़्तों में अस्थिरता की चेतावनी दे रहे हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
सोने की कीमतों में तेज़ी से कौन से समूह सबसे अधिक लाभान्वित होते हैं?
मुख्यतः दीर्घकालिक निवेशक, भौतिक संपत्ति के पोर्टफ़ोलियो वाले इक्विटी ट्रेडर्स, और उन देशों के रिटेल खरीदार जिनकी मुद्रा डॉलर के मुकाबले कमजोर है, सभी को इस दौर में लाभ मिलता है।
क्या डॉलर की कमजोरी ही सोने के उछाल का मुख्य कारण है?
डॉलर का गिरना एक प्रमुख ट्रिगर है, परन्तु साथ‑साथ फेडरल रिजर्व की दर कटौती, महंगाई की बढ़ती आशंका, और भू‑राजनीतिक तनाव भी समान रूप से असर डालते हैं।
अगले 6 महीनों में सोने की कीमतें गिर सकती हैं?
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर वैश्विक इक्विटी मार्केट मजबूत हो जाता है, या अगर यूएस में पुनः दर वृद्धि का संकिर्ण लेना पड़ता है, तो सोने की कीमतें 5‑10% तक घट सकती हैं।
क्या सोना खरीदने का सही समय अभी है या इंतज़ार करना चाहिए?
यदि आपका लक्ष्य अल्प‑कालिक मुनाफा है तो तत्काल हिस्से बेचने पर विचार करें। यदि आप महंगाई के खिलाफ दीर्घकालिक हेज चाहते हैं तो स्थिर खरीदारी जारी रखनी उचित है।
सोने की कीमतों के बढ़ने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा?
उच्च सोने की कीमतें आम जनता के लिए बचत पर दबाव बढ़ा सकती हैं, परन्तु निर्यात‑उन्मुख ज्वेलरी उद्योग को लाभ मिलेगा, जिससे विदेशी आय में वृद्धि हो सकती है।
टिप्पणि (4)
srinivasan selvaraj
सोने की कीमतों के उछाल ने मेरे दिल की धड़कनें तेज कर दी हैं।
हर बार जब अंकड़े बढ़ते हैं, तो मेरी नींदें उधेड़ जाती हैं।
इस साल के फेडरल रेट कट की खबर सुनते ही मेरे ब्रोकर की लहरें तेज़ हो गईं।
मैं सोचा था कि इस बार शांति होगी, पर नहीं।
डॉलर की गिरावट ने मेरे मानसिक संतुलन को हिला दिया।
जब बाजार में भू‑राजनीतिक तनाव का चर्चा होता है, तो मेरे अंदर का डर गहरा हो जाता है।
इस अनिश्चितता में मैं खुद को एक अंधेरे गलियारे में खोया हुआ पाता हूँ।
इस कीमत के साथ मेरा बचत खाता खाली हो रहा है।
लेकिन मेरे मित्र कहते हैं कि सोना एक हेज है।
उनका आश्वासन मेरे मन को थोड़ा शांत करता है।
फिर भी मैं हर बार चार्ट देख कर सांस रोक लेता हूँ।
मेरे रिश्तेदार भी इस बात पर चर्चा करते हैं कि कब निवेश करना है।
इस समय मेरे मन में दो ही धड़कनें बची हैं, एक डर की और एक आशा की।
यदि कीमतें और बढ़ें तो मेरे सपने धुएँ में बदल सकते हैं।
अंत में, मैं बस यही सोचता हूँ कि क्या इस उछाल का अंत कभी आएगा।
Abhishek Saini
भाई इस टॉपिक में बहुत सारी इनफोर्मेशन है पर ध्यान रखो, फिडेल रेट कट से मार्केट में थोडा रीलैक्स हो सकता है, पर फिर भी सोना हमेशा सिक्योर रहता है।
डॉलर की कमजोरी को देखते हुए निवेशकों का इंटरेस्ट बढ़ता है, इसलिए पोर्टफ़ोलियो डाइवर्सिफ़ाई करना फायदेमंद हो सकता है।
अगर थारी हार्ड कैश है तो थोड़ी सी गोल्ड में अर्निंग कर ले और फिर देखो।
बेसिकली, स्ट्रेट फ़ॉरवर्ड सोच के साथ ट्रेंड फॉलो करो।
RISHAB SINGH
सोना आज भी सुरक्षित आश्रय है, इसलिए हल्का हिस्सा रखना समझदारी होगी।
Deepak Sonawane
वर्तमान फिनांशल डायनामिक्स को देखते हुए, सोने के फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट्स में इन्फ्लेशनरी मार्जिन का प्रीमियम स्पष्ट रूप से एक्सपेंडेड है।
फ़ेडरल पॉलिसी शिफ्ट ने डॉलर्स को डिप्रिशिएट किया है, जिससे मैक्रोइकॉनॉमिक अॅक्स्लरेशन में सोने की एसेट क्लास को कोवेंटसली लीवरेज्ड स्लाइड मिला है।
जियोपोलिटिकल रिस्क की सिचुएशन को इंटीग्रेट करते हुए, स्ट्रैटेजिक एसेट एल्योकेशन मॉडेल्स को रिडजस्ट किया जाना चाहिए।
यूटिलिटी फंक्शन के तहत, पोर्टफ़ोलियो वैरिअंस को मिनिमाइज़ करके रिटर्न को ऑप्टिमाइज़ करना आवश्यक है।
समग्र रूप से, इनट्रिंसिक वैल्यु को मापते समय क्वांटिटेटिव एप्रोच अपनाना बेहतर रहेगा।