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अगर आप राजपूत वंश या मध्य भारत की इतिहास की बात करते हैं, तो मेवाड़ राजघराना का नाम ज़रूर सामने आता है। 13वीं सदी में जन्मे इस राजवंश ने अपनी ताक़त, वीरता और सांस्कृतिक धरोहर से पूरे राजस्थान को प्रभावित किया। यहाँ हम आसान शब्दों में मेवाड़ के प्रमुख पहलुओं को समझेंगे, ताकि आप बिना किसी भारी‑भारी शब्दावली के इतिहास को समझ सकें।
मेवाड़ का असली जन्म 1336 ईस्वी में राणा जयू चंद के हाथों हुआ था, जब उन्होंने कूवां वाली पहाड़ी पर अपनी राजधानी स्थापित की। उनके बाद राणा कियन, राणा सोहेल और राणा सवाई जैसे शासकों ने राज्य को मजबूत बनाया। इन शासकों ने अक्सर मुगलों से लड़ाई की, लेकिन कभी‑कभी समझौता भी किया, जो दिखाता है कि वे रणनीतिक भी थे।
राणा सलतान सिंह (1615‑1631) को अक्सर मेवाड़ का सबसे महान राणा माना जाता है। उन्होंने जैन मंदिरों को संवारने, जल जलाधार बनवाने और किले की दीवारें ऊँची करवाने में मदद की। उनके पीछे कई महलों और किलों की नींव रखी गई, जो आज भी पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।
मेवाड़ की संस्कृति में राजस्थानी रंगों का झलक मिलती है, पर थोड़ा अलग स्वाद के साथ। यहाँ की नृत्य‑गीत “मैला पगड़ी” और “बेर बिंदु” आज भी शादी‑बारात में गाए जाते हैं। मेवाड़ की कढ़ाई, ब्लॉक प्रिंट और विशेष मिट्टी के बर्तनों को स्थानीय कारीगर बड़ी कुशलता से बनाते हैं।
खान‑पान की बात करें तो मेवाड़ में दाल‑बाफ़ (गेहूँ की रोटी के साथ दाल) और गोकुल (भेड़ के दूध से बनी मिठाई) बहुत लोकप्रिय हैं। “केसरिया पनीर” और “बलूट” भी यहाँ की खाने‑पीने की पहचान बन गए हैं। ये व्यंजन सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि मेवाड़ की मिट्टी की खुशबू को भी साथ लेकर चलते हैं।
मेवाड़ के किले और महल सिर्फ़ पत्थर‑पत्थर नहीं हैं, वे राजाओं की कहानियों के गवाह हैं। उदयपुर का सिटी पैलेस, जो बाद में मेवाड़ की नई राजधानी बना, अपने शानदार झरोकोँ और बगीचों से विश्व भर के दर्शकों को आकर्षित करता है। इसी तरह “जगदीशपुर किला”, “रणसिंहपुर किला” और “सेवागढ़” भी इतिहास के पन्नों से जुड़ी कहानियों को जीवंत बनाते हैं।
मेवाड़ राजघराने ने अपनी शाहीनता को लेकर कभी‑कभी मुग़ल सम्राटों के साथ मिलीक भी किया। राणा जय सिंह द्वितीय ने अकबर को अपना मित्र माना और कई बार दरबार में जवाब दिया। उनका यह व्यवहार आज की राजनीति में भी एक उदाहरण है – जब विरोधी हो, तब भी सम्मान से पेश आना चाहिए।
यदि आप मेवाड़ की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो “फतेहपुर सीकरी” के बेहतरीन दृश्य, “नीलगढ़” की ऊँची दीवारें और “राणा किलों” की सैर आपके अनुभव को यादगार बना देगी। यहाँ के स्थानीय लोग हमेशा मुस्कुराते हैं और गेस्ट को अपने घर जैसा महसूस करवाते हैं।
आखिरकार, मेवाड़ राजघराना सिर्फ़ एक राजवंश नहीं, बल्कि एक जीवित इतिहास है जो आज भी हमारे दिलों में धड़कता है। इसकी वीरता, संस्कृति और सामाजिक समझदारी हम सबको कुछ न कुछ सिखा देती है। तो अगली बार जब आप राजपूत इतिहास पढ़ें, तो मेवाड़ को याद रखें और शायद इन कहानियों में खुद को भी खोजें।
अरविंद सिंह मेवाड़, प्रसिद्ध राजपूत राजा महाराणा प्रताप के वंशज और HRH ग्रुप ऑफ होटल्स के चेयरमैन, का 81 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे संपत्ति विवादों और मेवाड़ की शाही विरासत की देखरेख के लिए जाने जाते थे। उनकी विरासत में क्रिकेट और पोलो की अभिरुचि भी शामिल रही है। उनके निधन पर उदयपुर सिटी पैलेस पर्यटकों के लिए बंद रहेगा।
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