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जब हम दीवाली, एकत्रित रोशनियों, मिठाइयों और प्राचीन रिवाज़ों से भरपूर भारतीय त्योहारी सीजन, Also known as Deepavali, यह त्योहार भारत के कई हिस्सों में अलग‑अलग ढंग से मनाया जाता है लेकिन उसका मूल सार एक जैसा रहता है – बुराई पर अच्छाई की जीत और अंधेरे पर प्रकाश की विजय। यह परिभाषा आपको दीवाली के इतिहास, सामाजिक प्रभाव और आधुनिक चलन के बीच कड़ी समझाएगी।
दीवाली के मुख्य घटकों में दियों, छोटे तेल या घी से भरे दीपक जो घर‑घर में जलते हैं का खास महत्व है। दियों की रोशनी न केवल घर को उज्ज्वल करती है, बल्कि बुरे विचारों को दूर भगाती है – यही कारण है कि “दीपावली” शब्द भी “दीप” से जुड़ा है। साथ ही मिठाई, साथियों और परिवार के साथ बाँटने के लिये बनाया गया स्वादिष्ट पकवान भी इस त्यौहार की अनिवार्य वस्तु बन गया है। मिठाई की मिठास रिश्तों में मिठास जोड़ती है, इसलिए हर घर में लड्डू, बर्फी या सोहनियां तैयार की जाती हैं।
दीवाली तीन मुख्य दिनों में बाँटी जाती है: प्रथम दिन ‘वसूली’, द्वितीय दिन ‘धनतानत्रय’, तृतीय दिन ‘भाइयों की दीवाली’ और चौथा दिन ‘घरौरी’। इन दिनों में पूजा करने की परम्परा प्रमुख है। लोग माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करते हैं, क्योंकि वे धन‑संपदा और बाधाओं को दूर करने वाले माने जाते हैं। पूजा का भाग बनते हैं रतनज्योति, मनोरंजन और शांति के लिये प्रयोग होने वाली रंगीन रोशनियाँ और जलते हुए अगरबत्ती। ये सभी चीज़ें मिलकर घर में आध्यात्मिक माहौल बनाती हैं।
दीवाली का दूसरा बड़ा पहलू उपहार देना और प्राप्त करना है। हम सभी ने बचपन में गिफ्ट पैक, मिठाई की लड्डू, या नए कपड़े देखे हैं। यह रिवाज़ ‘संबंधों को जोड़ता है’ – ऐसा सामाजिक बंधन बनाता है जो साल‑भर के व्यावसायिक व निजी जीवन में मदद करता है। इस प्रकार दीवाली एक आर्थिक सत्र भी बन जाती है; छोटे‑बड़े व्यापारी, रिटेल स्टोर और ई‑कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म इस दिन पर छूट और विशेष ऑफ़र लगाते हैं।
सांस्कृतिक दृष्टिकोण से दीवाली की रोशनी सिनेमा, संगीत और नृत्य में भी परिलक्षित होती है। फिल्में, गाने और डांस परफॉर्मेंस अक्सर दीवाली के थीम पर बनाए जाते हैं, जिससे इस त्योहारी माहौल को नई पीढ़ी तक पहुँचाया जा सके। साथ ही, समुदाय में जलते हुए पटाखों का चलन अभी भी लोकप्रिय है, लेकिन पर्यावरणीय जागरूकता के कारण कई लोग अब बिना ध्वनि वाले पैटर्न और LED लाइट्स को पसंद कर रहे हैं। यह बदलाव दिखाता है कि परम्परा और नवाचार एक साथ चल सकते हैं।
एक और रोचक पहलू है ‘स्मार्ट दीवाली’ – जहाँ लोग मोबाइल ऐप, AI‑आधारित प्लानर या ऑनलाइन शॉपिंग की मदद से अपने त्यौहार को व्यवस्थित करते हैं। इससे किराने‑किराना, दियों की खरीद और उपहार की डिलीवरी पूरी तरह डिजिटल हो गई है, जबकि परम्परागत भावना बरकरार है। यह युग‑उन्नयन स्पष्ट रूप से बताता है कि “दीवाली आध्यात्मिकता + तकनीक = आधुनिक उत्सव”।
समापन में, दीवाली केवल एक दिन का उत्सव नहीं है, यह एक सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जाल है जिसमें दियों, मिठाई, पूजा और उपहारों के बीच गहरा संबंध जुड़ा है। नीचे आप विभिन्न लेख देखेंगे जो दीवाली के इतिहास, रिवाज़, खाने‑पीने की रेसिपी और नवीनतम ट्रेंड्स पर गहराई से चर्चा करते हैं। चाहे आप पारंपरिक रिवाज़ सीखना चाहते हों या डिजिटल प्लानिंग के टिप्स, इस संग्रह में सब कुछ मिलेगा। अब चलिए, इस चमक‑धमक वाले उत्सव की दुनिया में डुबकी लगाते हैं।
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