महाराज: मोस्ट पॉवरफुल लेकिन धीमी चलती फिल्म जिसमें जुनैद खान की शुरुआत

महाराज: मोस्ट पॉवरफुल लेकिन धीमी चलती फिल्म जिसमें जुनैद खान की शुरुआत

नेटफ्लिक्स की नई फिल्म 'महाराज' एक मजबूर जातित की कहानी है, जो 19वीं सदी के पत्रकार और समाज सुधारक कर्सानदास मूलजी के जीवन पर आधारित है। इस फिल्म का निर्देशन सिद्धार्थ पी मल्होत्रा ने किया है और इसमें जुनैद खान ने अपनी पहली फिल्म के रूप में अभिनय किया है। जुनैद खान, जो बॉलीवुड के सुपरस्टार आमिर खान के बेटे हैं, ने अपने करियर की शुरुआत इस फिल्म से की है। फिल्म की कहानी 2013 की गुजराती उपन्यासकार सौरभ शाह के उपन्यास पर आधारित है।

फिल्म की कहानी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा 1862 का 'महाराज' मानहानि केस है, जो एक प्रमुख धार्मिक धर्मगुरु जदुनाथजी और कर्सानदास के बीच का है। जदुनाथजी वैष्णव संप्रदाय के पुजारी थे और उनपर आरोप था कि वे अपनी महिला भक्तों का यौन शोषण कर रहे थे। कर्सानदास ने इस सच्चाई को उजागर किया, जिसके चलते जदुनाथजी ने उनके खिलाफ मानहानि मुकदमा दायर किया। यह मुकदमा कोड़ कसरियलता और भ्रष्टाचार के खिलाफ कर्सानदास के संघर्ष की कहानी है।

फिल्म का मुख्य पात्र कर्सानदास, जुनैद खान द्वारा निभाया गया है और जदुनाथजी की भूमिका जयदीप अहलावत ने निभाई है। कर्सानदास का साथ देने वाली वकील का किरदार शारवरी वाघ ने निभाया है। फिल्म में कर्सानदास की मंगेतर किशोरी का भी महत्वपूर्ण किरदार है, जिसे शालिनी पांडे ने निभाया है। किशोरी का जीवन जदुनाथजी के शोषण का शिकार हो चुका है और इस हादसे के चलते वह आत्महत्या कर लेती है।

कहानी के बीच कर्सानदास का संघर्ष और उनकी मंगेतर की मौत उनके व्यक्तिगत जीवन में गहरा असर डालती है। कर्सानदास का संघर्ष व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तर पर महत्वपूर्ण है। यह फिल्म न केवल एक ऐतिहासिक घटना को जीवंत करती है बल्कि खुलासा करती है कि किस प्रकार एक व्यक्ति समाज में सुधार ला सकता है।

हालांकि, फिल्म की गहराई और विषय वस्तु को देखा जाए तो यह फिल्म कहीं कहीं पर मंद गति में चलता है। फिल्म के संवादों और उसकी प्रस्तुति में समय समय पर पारंपरिक हिंदी पीरियड फिल्मों की रूढ़ियों का इस्तेमाल किया गया है। इससे फिल्म की तेज़ी में कमी होती है और दर्शकों को बांधे रखने में असफल रहती है।

फिल्म की रिलीज़ को पहले तो एक धार्मिक संप्रदाय द्वारा दायर की गई याचिका के चलते रोका गया था, लेकिन गुजरात हाई कोर्ट ने इस याचिका का निस्तारण कर दिया और फिल्म की रिलीज़ को हरी झंडी दे दी। फिल्म में अपनी प्रस्तुति और निर्देशक की दृष्टि के चलते कई पहलू अच्छे बन पड़े हैं, लेकिन अंततः फिल्म उतनी सजीवता नहीं ला पाई, जितनी संभावना थी।

महाराज फिल्म ने एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित दिलचस्प कहानी पेश की है। लेकिन कुछ जगहों पर फिल्म की धीमी रफ्तार और क्लिशे के तत्व इसे बीच-बीच में उबाऊ बना देते हैं। यह फिल्म निश्चित रूप से समाज सुधारक कर्सानदास मूलजी की साहसिक कहानी को उजागर करती है और इस ऐतिहासिक घटना की जड़ तक पहुंचने की कोशिश करती है, लेकिन इसे थोड़ी और जानदार प्रस्तुति की आवश्यकता थी।

टिप्पणि (20)

  1. Rajesh Dadaluch
    Rajesh Dadaluch
    23 जून, 2024 AT 08:16 पूर्वाह्न

    बोरिंग।

  2. Shubham Ojha
    Shubham Ojha
    25 जून, 2024 AT 04:30 पूर्वाह्न

    ये फिल्म सिर्फ एक कहानी नहीं, एक जागृति है। कर्सानदास जैसे लोगों ने अपनी जान जोखिम में डालकर सच्चाई को उजागर किया, और आज हम उनकी आवाज़ सुन पा रहे हैं। धीमी गति? हां, पर ये धीमापन उस युग की भारी सांसों को दर्शाता है - जहां हर शब्द एक लड़ाई था।

  3. tejas maggon
    tejas maggon
    26 जून, 2024 AT 09:25 पूर्वाह्न

    अरे यार ये फिल्म तो राजनीति का नया टूल है! जो भी इसे बनाया उसके पीछे कोई बड़ा बैंक या फॉरेन फंड है। धर्म को बदनाम करने की साजिश है। जदुनाथ जी को बदनाम करके नेटफ्लिक्स ने भारत के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाई है।

  4. Viraj Kumar
    Viraj Kumar
    27 जून, 2024 AT 18:02 अपराह्न

    फिल्म में जो भी बदलाव चाहिए था, वो कर्सानदास ने किया। उसकी मंगेतर की मौत का दृश्य देखकर मैं रो पड़ा। आज भी जब कोई लड़की अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ती है, तो उसे निशाना बनाया जाता है। ये फिल्म सिर्फ इतिहास नहीं, आज की सच्चाई है।

  5. Deeksha Shetty
    Deeksha Shetty
    28 जून, 2024 AT 07:51 पूर्वाह्न

    क्या आपने देखा कि फिल्म में जो वकील है वो असली जीवन में एक अनजान लड़की थी जिसे बाद में बॉलीवुड में फिर से दिखाया गया? ये सब झूठ है। कर्सानदास का वास्तविक चरित्र कभी इतना नायकवादी नहीं था।

  6. Swapnil Shirali
    Swapnil Shirali
    29 जून, 2024 AT 19:54 अपराह्न

    धीमी फिल्म? हां। लेकिन आपने कभी सोचा है कि शायद ये धीमापन इसलिए है कि दर्शक को गहराई से सोचने का मौका दिया जाए? आज की फिल्में तो बस 20 मिनट में एक लव स्टोरी और 5 मिनट में ड्रम बीट्स बजाकर खत्म हो जाती हैं। ये फिल्म आपको रुकने के लिए कहती है - और ये बहुत कम लोगों को समझ आता है।

  7. Pratyush Kumar
    Pratyush Kumar
    30 जून, 2024 AT 15:13 अपराह्न

    मैंने फिल्म देखी और सच कहूं तो जुनैद खान का अभिनय बहुत सादगी से भरा था। उसने कोई अतिरिक्त नाटक नहीं किया, बस एक आदमी की तरह अभिनय किया जो जानता है कि उसकी बात सुनी नहीं जाएगी। और फिर भी वो बोलता रहा। ये असली साहस है।

  8. nishath fathima
    nishath fathima
    1 जुल॰, 2024 AT 01:13 पूर्वाह्न

    इस फिल्म को रोकने की कोशिश करने वालों को याद दिलाना चाहती हूं कि धर्म का अर्थ शोषण नहीं, अहिंसा और सत्य है। जो लोग इस फिल्म के खिलाफ हैं, वे अपने धर्म का अपमान कर रहे हैं।

  9. DHEER KOTHARI
    DHEER KOTHARI
    1 जुल॰, 2024 AT 22:27 अपराह्न

    बहुत अच्छी फिल्म थी 😊 जुनैद ने अपनी शुरुआत बहुत शानदार की। अब देखना है कि वो इस राह पर आगे कैसे बढ़ते हैं। आमिर खान के बेटे होने का दबाव नहीं, बल्कि अपनी पहचान बनाने का साहस दिखाया है।

  10. vineet kumar
    vineet kumar
    3 जुल॰, 2024 AT 16:10 अपराह्न

    कर्सानदास की कहानी एक अद्वितीय उदाहरण है कि एक व्यक्ति कैसे एक समाज के अंधविश्वास के खिलाफ खड़ा हो सकता है। ये फिल्म सिर्फ एक बयान नहीं, एक आह्वान है - कि क्या हम आज भी उसी साहस को दिखा सकते हैं? या हम भी अपने आप को बचाने के लिए चुप रह जाते हैं?

  11. Ratna El Faza
    Ratna El Faza
    5 जुल॰, 2024 AT 09:33 पूर्वाह्न

    मैंने फिल्म देखी और लगा कि ये बहुत ज्यादा लंबी है। अगर इसे 20 मिनट कम कर दिया जाता तो ये बहुत ज्यादा असरदार होती। बाकी बातें ठीक हैं।

  12. Nihal Dutt
    Nihal Dutt
    5 जुल॰, 2024 AT 20:07 अपराह्न

    अरे यार ये फिल्म तो सिर्फ एक बहाना है! जदुनाथ जी को बदनाम करके लोगों को गुस्सा दिलाया जा रहा है। इसके बाद अब क्या आएगा? शिवाजी को चोर बनाया जाएगा? अब तो हर ऐतिहासिक व्यक्ति को खराब दिखाने की कोशिश हो रही है।

  13. Upendra Gavale
    Upendra Gavale
    7 जुल॰, 2024 AT 15:56 अपराह्न

    जुनैद खान ने बस एक आदमी की तरह अभिनय किया… बिना बोले, बिना दिखाए। और वो बहुत कम लोग कर पाते हैं। ये फिल्म बस एक फिल्म नहीं, एक आत्मा की आवाज़ है। 🙏

  14. abhimanyu khan
    abhimanyu khan
    8 जुल॰, 2024 AT 18:32 अपराह्न

    फिल्म की संरचना अत्यधिक अनुशासित और भावनात्मक रूप से असंतुलित है। निर्देशन ने ऐतिहासिक संदर्भ को भावनात्मक नाटकीयता के लिए उपयोग किया है, जिससे वास्तविक घटनाओं का सार खो गया है। यह एक विश्लेषणात्मक असफलता है।

  15. Jay Sailor
    Jay Sailor
    10 जुल॰, 2024 AT 13:19 अपराह्न

    ये फिल्म भारत के आत्मसम्मान के खिलाफ एक विदेशी योजना है। अमेरिका और यूरोप जानते हैं कि भारत की आध्यात्मिकता हमारी ताकत है - इसलिए वे इसे तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। ये फिल्म एक राजनीतिक शस्त्र है, जिसे नेटफ्लिक्स ने हमारे अंदर घुसाया है।

  16. Anindita Tripathy
    Anindita Tripathy
    12 जुल॰, 2024 AT 03:26 पूर्वाह्न

    मैंने इस फिल्म को अपनी माँ के साथ देखा। वो रो पड़ीं। उन्होंने कहा - ये कहानी मेरी दादी की जिंदगी जैसी है। जब तक हम ऐसी कहानियों को देखेंगे, तब तक हम अपने अतीत से जुड़े रहेंगे। धीमी गति? शायद बस इतना ही कि दिल को समय देने के लिए।

  17. Ronak Samantray
    Ronak Samantray
    13 जुल॰, 2024 AT 17:39 अपराह्न

    क्या आपको लगता है कि ये फिल्म असली है? शायद ये सब कुछ बनाया गया है - जिस तरह से अमेरिका ने वियतनाम युद्ध को बदल दिया। जदुनाथ जी को शायद एक बहुत बड़ा व्यक्ति बनाया गया है ताकि लोग उन्हें नफरत करें।

  18. Anil Tarnal
    Anil Tarnal
    13 जुल॰, 2024 AT 21:04 अपराह्न

    मैंने इस फिल्म को देखा और फिर दोबारा देखा। और तीसरी बार भी। क्योंकि जब तक आप इसकी धीमी गति को समझ नहीं लेते, तब तक आप इसकी आत्मा को नहीं देख पाते। ये फिल्म आपको नहीं बदलती - ये आपको खोजती है।

  19. Keshav Kothari
    Keshav Kothari
    14 जुल॰, 2024 AT 11:52 पूर्वाह्न

    फिल्म ने कर्सानदास के असली विचारों को बहुत कम दिखाया। वो एक आध्यात्मिक आंदोलनकारी थे, न कि सिर्फ एक लेखक। ये फिल्म उनके विचारों का एक असंपूर्ण अवतार है।

  20. Subashnaveen Balakrishnan
    Subashnaveen Balakrishnan
    16 जुल॰, 2024 AT 01:31 पूर्वाह्न

    मैं ये फिल्म एक दिन रात में देख रहा था और जब जुनैद खान का चेहरा उस दर्द भरे दृश्य में था, तो मैं बस रुक गया। इस फिल्म में कोई जीत नहीं है - बस एक आदमी जो अपनी बात बोलता है, और दुनिया उसे सुनती है या नहीं - ये फिल्म उसी की कहानी है।

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