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तुलसी विवाह भारतीय शादी की एक अनोखी परम्परा है जो अक्सर शशुअभिषेक या बाल विवाह से अलग समझी जाती है। यह प्रथा मुख्य रूप से उत्तर भारत के कई गांवों में देखी जाती है, जहाँ दूल्हा‑दुलहन की उम्र छोटी हो सकती है और शादी का उद्देश्य सामाजिक बंधन बनाना होता है, न कि रोमांटिक संबंध।
कहानी के अनुसार, तुलसी विवाह का मूल कारण दहेज का बोझ या आर्थिक दबाव से बचना माना जाता है। परिवार छोटे‑बड़े दोनों आयु वर्ग के बच्चों को शादी करके सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। अक्सर यह शादी तब की जाती है जब लड़के या लड़की अभी किशोरावस्था में हों, जिससे दहेज की माँग कम हो और दोनों परिवारों के बीच संबंध मजबूत बनें।
रिवाज़ में सबसे पहला कदम "तुलसी पाठ" है, जहाँ तुलसी के पत्तों को यादृच्छिक रूप से दूल्हा‑दुलहन के हाथों में बांटा जाता है। फिर "गुरु शीषु" या "सेवा भोजन" जैसी छोटी‑छोटी रस्में होती हैं। साधारण तौर पर दूल्हा‑दूलहन को एक साथ कपड़े पहना कर घर के दरवाजे से बाहर ले जाया जाता है, और फिर छोटे‑छोटे भोज के साथ समारोह समाप्त होता है।
कभी‑कभी इस शादी को "अधूरा विवाह" कहा जाता है क्योंकि बच्चा बड़े होने पर इसे आधिकारिक रूप से पूरा किया जाता है। कई बार युवा जोड़े को फिर से विवाह के लिए तैयार किया जाता है, जब वे आर्थिक रूप से सक्षम हो जाते हैं। इससे सामाजिक रूप से कोई बुरा नहीं माना जाता, बल्कि इसे एक संक्रमणकालीन कदम समझा जाता है।
आधुनिक समय में तुलसी विवाह को लेकर कुछ विवाद भी हैं। सामाजिक संगठनों का कहना है कि यह बच्चों के अधिकारों के खिलाफ हो सकता है, जबकि कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में इसे परम्परा के रूप में सम्मानित किया जाता है। इसलिए यह जरूरी है कि परम्परा को समझते हुए बच्चों के भविष्य की सुरक्षा भी ध्यान में रखी जाए।
अगर आप या आपका परिवार इस रिवाज़ को अपनाने की सोच रहा है, तो कुछ बातों का ध्यान रखें:
अंत में, तुलसी विवाह को समझना आसान हो सकता है अगर हम इसे केवल एक शादी नहीं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा और परम्परा के रूप में देखें। लेकिन समय के साथ, बच्चों के अधिकारों को प्राथमिकता देना भी ज़रूरी है। इस तरह हम परम्परा को सम्मान देते हुए भविष्य की पीढ़ी को सुरक्षित रख सकते हैं।
तुलसी विवाह और देव उठनी एकादशी हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान विष्णु के चार माह की निद्रा से जागने का प्रतीक है और इसे विवाह और अन्य महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के लिए शुभ माना जाता है। देव उठनी एकादशी 2024 में 11 नवंबर की शाम से 12 नवंबर तक मनाई जाएगी। भक्त इस दिन उपवास रखकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
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