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जब आप स्त्री अंतरिक्ष मिशन, महिलाओं द्वारा किए गए अंतरिक्ष उड़ान और अनुसंधान कार्यों का समूह की बात करते हैं, तो सबसे पहले नासा, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी याद आती है। नासा ने 1963 में वैलेन्टिना टेरेश्कोवा को पहला महिला अंतरिक्ष यात्री बना कर इतिहास लिखा। भारत में ISRO, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन भी जल्द ही महिला अंतरिक्ष यात्रिनियों को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रहा है। ये तीन मुख्य संस्थान अंतरिक्ष यात्रिनी, अंतरिक्ष यान में जाने वाली महिला अंतरिक्ष यात्री के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं।
पहला बड़ा कदम वैलेन्टिना टेरेश्कोवा ने 1963 में सोवियत अंतरिक्ष में किया। उसके बाद 1983 में साल्ली राइड ने स्पेस शटल कोलंबिया में यात्रा की, जिससे अमेरिकी युवा महिलाओं को रोल मॉडल मिला। भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री कलपना चौधरी (कलपना चावला) ने 1997 में स्पेस शटल कोलंबिया में भाग लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन किया। इन मिशनों ने साबित किया कि तकनीकी और शारीरिक बाधाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर इच्छा मजबूत हो।
भविष्य में, नासा की आर्टेमिस प्रोग्राम महिला अंतरिक्ष यात्रिनियों को चंद्रमा पर वापस लाने का लक्ष्य रखता है। इस मंच पर सूनिता विलियम्स जैसे अनुभवी अंतरिक्ष यात्री ने कई बार अंतरिक्ष में रहने का रिकॉर्ड बनाया है, जिससे महिलाओं की कौशल पर भरोसा बढ़ रहा है। भारत की गगनयान योजना भी महिलाओं को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी में है; पहला महिला मिशन 2024 के बाद निर्धारित है, जिससे भारतीय विज्ञानियों को व्यावहारिक अनुभव मिलेगा।
इन सभी मिशनों के बीच एक समान बात है: महिला अंतरिक्ष यात्रिनी स्वास्थ्य, जीव विज्ञान और मनोविज्ञान में नई जानकारी लाती हैं। अंतरिक्ष में दीर्घकालिक रहना शरीर पर कई असर डालता है, जैसे हड्डियों की कमजोरी और मसल एट्रोफ़ी। महिलाओं की शारीरिक प्रतिक्रिया को समझकर भविष्य के दीर्घकालिक अंतरिक्ष यात्रियों के लिए बेहतर एर्गोनोमिक डिज़ाइन बनते हैं। यही कारण है कि स्त्री अंतरिक्ष मिशन न सिर्फ प्रेरणा के स्रोत हैं, बल्कि वैज्ञानिक डेटा का भी स्रोत हैं।
जब हम इस क्षेत्र के सामाजिक प्रभाव की बात करते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि महिलाओं को अंतरिक्ष में भेजना समाज में लैंगिक समानता को आगे बढ़ाता है। स्कूल में लड़कियों को अब अंतरिक्ष के बारे में सपने देखने की हिम्मत मिलती है, क्योंकि वे देखती हैं कि कोई भी उनके पीछे नहीं रहता। इस तरह के रोल मॉडल STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित) में करियर चुनने के लिए प्रेरणा बनते हैं।
तकनीकी दृष्टिकोण से, स्त्री अंतरिक्ष मिशन में कई नई तकनीकें उपयोग की जाती हैं। उदाहरण के लिए, ISRO ने महिलाओं के लिए कस्टमाइज्ड स्पेससूट विकसित करने की पहल की है, जिससे फिटिंग और आराम दोनों में सुधार हो। नासा ने जैविक सेंसर विकसित किए हैं जो महिला हार्मोन स्तर को रीयल‑टाइम में मॉनिटर करते हैं, जिससे मिशन प्लानिंग आसान हो जाती है। ये तकनीकें केवल महिलाओं के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे अंतरिक्ष कार्यक्रम को बेहतर बनाती हैं।
अंत में, आप इस पेज पर पाएंगे कई लेख जो विभिन्न पहलुओं को कवर करते हैं: अंतरिक्ष यात्रिनियों की व्यक्तिगत कहानियां, ISRO के महिला अंतरिक्ष कार्यक्रम की अपडेट, नासा के आर्टेमिस प्रोजेक्ट में महिलाएं, और भविष्य के चंद्र तथा मार्स मिशनों में स्त्री अंतरिक्ष मिशन की भूमिका। नीचे दी गई सूची आपको इस अद्भुत यात्रा के हर कोने से परिचित करवाएगी, चाहे आप एक उत्सुक पाठक हों या पेशेवर शोधकर्ता। चलिए, अब आगे बढ़ते हैं और देखेंगे किन कहानियों में महिलाओं ने अंतरिक्ष को नई दिशा दी है।
ब्लू ओरिजिन का NS-31 मिशन 14 अप्रैल को सभी-स्त्री क्रू के साथ सफल हुआ; कैटी पेरी, लॉरेन सैंचेज़ और चार अन्य महिलाएँ 62 मील ऊँचाई पर अंतरिक्ष में पहुँचीं, इतिहास का नया अध्याय लिखते हुए.
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