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ममता बनर्जी का नाम सुनते ही कई लोगों को ट्रैफ़िक जाम, किफ़ायती राशन या फिर "आओ मिलकर बनाएं बदलते भारत" का नारा याद आता है। शुरुआती दिनों में उनका संघर्ष और आज की सत्ता‑सिंहासन तक का सफ़र काफी रोचक है, इसलिए आज हम इसे आसान भाषा में समझेंगे।
ममता ने 1970 के दशक में जिजीवास्मरणीय के रूप में राजनीति में कदम रखा। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़कर अपना पहला मंच पाया, पर बाद में उनका मतभेद तेज़ हो गया। 1998 में वे तमिलनाडु के तामिलागुड़ा में कांग्रेस से बाहर होकर अपना खुद का दल, आलायचर्य पार्टी (अब तृणमूल कांग्रेस) की स्थापना कर दी। धीरे‑धीरे उनका समर्थन बढ़ा, और 2001 में वे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनीं – यह एक बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि राज्य में पहले कभी महिला मुख्यमंत्री नहीं रही थीं।
शासन में कदम रखे ही उन्होंने कई बीजी योजना चालू कीं। किशोर आत्मनिर्भरता योजना ने युवाओं को स्वरोज़गार के लिए ट्रेनिंग दी, जबकि मुक्ति योजना ने महिलाओं को किफ़ायती कपड़े और होम एप्लायंसेज़ उपलब्ध कराए। इसके अलावा, आकांक्षा योजना ने एक साल के भीतर 1 लाख से अधिक छात्रों को डिग्री दिलवाई। इन योजनाओं से राज्य में बेरोज़गारी घटती देखी गई और आम लोगों का भरोसा भी बढ़ा।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी उन्होंने कदम बढ़ाए। सुव्यवस्थित अस्पताल योजना ने दुर्गरावस्थाओं में बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध करवाईं, और मुफ्त दवा के लिए फ्री मेडिसिन ड्राइव शुरू किया। ग्रामीण इलाकों में सड़कों और जलव्यवस्था की समस्याओं को हल करने के लिए सुरभि योजना लागू हुई, जिससे कई गांवों में पानी की पहुँच बनी।
2025 की शुरुआत में ममता बनर्जी फिर से चुनावी मैदान में हैं। उन्होंने हाल ही में विकास का उछाल नामक नया मोर्चा शुरू किया, जिसमें कौशल प्रशिक्षण, एग्री‑टेक और डिजिटल डिवाइड कम करने पर ज़ोर दिया गया है। अपने बयानों में वे अक्सर कहते हैं, "एक कदम आगे बढ़ना, दूसरा कदम मिलकर बढ़ना"। इस साल के चुनावों में उनका मुख्य प्रतिद्वंद्वी फिर से कांग्रेस का उम्मीदवार है, और संघर्ष तेज़ होता दिख रहा है।
वहीं, सामाजिक मुद्दों पर भी चर्चा बनी हुई है। कुछ विरोधी कहते हैं कि उनकी सरकार ने भूमि अधिग्रहण में पारदर्शिता नहीं रखी, जबकि उनका समर्थक विपक्षी आरोपों को "राजनीतिक कड़ी" कह कर खारिज कर देते हैं। इस पहलू को समझना जरूरी है क्योंकि यह दर्शकों के विचार को भी प्रभावित करता है।
भविष्य की बात करें तो ममता बनर्जी की योजना डिजिटल प्रयोगशालाओं को गांवों में स्थापित करना है, जहाँ किसान अपनी फसल की देखभाल और मार्केटिंग खुद कर सकें। यह पहल अभी प्रोटोटाइप स्तर पर है, पर अगर सफल हुई तो कृषि क्षेत्र में क्रांति आ सकती है।
संक्षेप में, ममता बनर्जी एक ऐसी नेता हैं जो लगातार खुद को और अपने राज्य को नई दिशा में ले जाने की कोशिश करती हैं। चाहे वह शिक्षा, स्वास्थ्य, या रोजगार की बात हो, उन्होंने कई पहल शुरू की हैं जो आम लोगों को सीधा फायदा पहुंचाती हैं। अगर आप पश्चिम बंगाल की राजनीति या उनकी योजनाओं में रुचि रखते हैं, तो ये बिंदु आपके लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि उनकी त्रिनमूल कांग्रेस सरकार हिंसा प्रभावित बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों को आश्रय देगी। कोलकाता में आयोजित 'शहीद दिवस' रैली में बनर्जी ने यह आश्वासन दिया और यूएन प्रस्ताव का हवाला देते हुए यह सहायता प्रदान करने की प्रतिबद्धता जताई।
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