90 रन: क्रिकेट में एक खास आंकड़ा

जब हम 90 रन, क्रिकेट में बल्लेबाज द्वारा बनाया गया 90‑रन का व्यक्तिगत स्कोर. Also known as नब्बे रन की बात करते हैं, तो ये सिर्फ एक संख्या नहीं, बल्कि कई रणनीतिक फैसलों की शुरुआत भी होती है। 90 रन अक्सर 100 की ओर बढ़ने का पुल बनाते हैं, इसलिए कोच और फ़ील्डिंग साइड दोनों ही इसे ध्यान से देखते हैं।

क्रिकेट, एक टीम‑स्पोर्ट जिसमें बैट्समैन, बॉलर और फ़ील्डर मिलकर रन बनाते हैं में 90 रन का मायना अलग‑अलग स्वरुप में दिखता है। टेस्ट मैच में ये सॉफ़्टनर का काम कर सकता है, जबकि ODI में यह तेज़ गति से स्ट्राइक‑रेट बढ़ाने का संकेत बन सकता है। यानी 90 रन "एक माइलस्टोन है जो अक्सर 100 की ओर ले जाता है"—यहाँ तक कि पिच की स्थिति और बैट्समैन की फॉर्म दोनों इस संख्या को तय करते हैं।

90 रन के आसपास की रोचक बातें

बैट्समैन, वह खिलाड़ी जो बैट से गेंद मारकर रन बनाता है के लिए 90 रन एक आत्मविश्वास का स्तर होता है। जब कोई बल्लेबाज 90 तक पहुंचता है, तो मन में दो सवाल उठते हैं: "क्या 100 तक पहुँचूँगा?" या "आज का इनिंग मेरे लिये खत्म हो गया?" इस दुविधा में टीम की रणनीति बदलती है—बॉलरों को बेहतर प्लान बनाना पड़ता है और फ़ील्डर को फोकस बढ़ाना होता है। ऐसी स्थितियों में कई बार रन‑संचयन को स्थिर रखने के लिए सिंगल‑रोन या रोटेशन पर ध्यान दिया जाता है।

इसी तरह टेस्ट मैच, क्रिकेट का सबसे लंबा फॉर्मेट, जहाँ पाँच दिनों तक खेल चलता है में 90 रन अक्सर डिफ़ेंसिव अटैक का मिश्रण बनाते हैं। अगर टीम पहले ही दो विकेट खो चुकी है, तो 90‑रन का इन्क्रीमेंट दोनों ही पक्षों को नई दिशा देता है—बोलिंग टीम को दबाव बढ़ाने का मौका और बैटिंग टीम को स्थिरता बनाए रखने का। यही कारण है कि कई क्रिकेट विश्लेषक 90‑रन को "कंट्रोल प्वाइंट" कहते हैं।

ODI या T20 जैसे लिमिटेड‑ओवर फॉर्मेट में भी 90 रन का प्रभाव अलग नहीं है। ODI, वन डे इंटरनेशनल, 50 ओवर का फॉर्मेट में एक बल्लेबाज 90‑रन पर पहुंचते ही स्ट्राइक‑रेट को कैसे बनाए रखे, यही बड़ी चुनौती बनती है। तेज़ आउटफ़ील्डिंग या पिच की तेज़ी इस आंकड़े को आसान या कठिन बना सकती है। इसलिए हम अक्सर देखते हैं कि 90‑रन पर बल्लेबाज रूट‑बाउंड्री शॉट्स को संतुलित रखते हैं, जिससे टीम का रन‑रेट स्थिर रहे।

संपूर्ण रूप से, 90 रन का महत्व केवल व्यक्तिगत रिकॉर्ड तक सीमित नहीं है। यह कई खेल‑समीक्षकों और अकादमिक लेखों में "स्ट्रेटेजिक ब्रेकपॉइंट" के रूप में उल्लेखित है। उदाहरण के तौर पर, यशस्वी जयसवाल के 173* के बाद 90‑रन की छोटी‑सी इनिंग्स ने टीम को टेस्ट में बढ़त दिलाई, जबकि नारायण जगदेवसन की 277‑रन वाली इनिंग में 90‑रन का मोमेंट मैच के रफ़्तार को बदलता हुआ दिखा। इस तरह के केस स्टडी दिखाते हैं कि 90‑रन कैसे बड़े स्कोर का आधार बन सकता है।

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